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भाषण: नागपुर कांग्रेसमें असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावपर

कहलवाया था कि वे उस प्रस्तावको देखना चाहते हैं। लेकिन वह उनके पास भेजा न जा सका। अब उन्होंने प्रस्ताव देख लिया है――और मुझे एक लिखित सन्देश भेजा है, जिसका आशय यह है कि वे इस प्रस्तावक पक्षमें कतई नहीं हैं। यदि वे यहाँ होते तो वे अपना विरोध प्रकट करते ही। मूल सिद्धान्तके प्रति भी उनकी कोई सहानुभूति नहीं है। उनका खयाल है कि देशवासियोंको अपना सन्देश भेज देना उनका कर्त्तव्य है, फिर निर्णय देशवासी स्वयं करें।

लाला लाजपतरायने आपके सामने पुलिसके विषयमें अपने विचार रखे। प्रस्तावके उपरोक्त भागकी व्याख्याके रूप में जो कुछ उन्होंने कहा है उससे मैं शब्दश: सहमत हूँ। मैं सोचता हूँ कि यह ठीक ही है कि सरकारी नौकरी के लिए निर्धारित कर्तव्यों में――वे नौकर चाहे नागरिक व्यवस्थामें हों, सेनामें हों चाहे पुलिस विभाग में हों――हस्तक्षेप न करें। लेकिन हम उनसे यह अवश्य कहें कि वे अपनी आत्माका हनन न करें। मैं इस बातको कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ। यदि मैं उन सिपाहियों में से एक होता, जिन्हें जलियाँवाले बागमें उन निरपराध व्यक्तियोंको गोली मार देने के लिए जनरल डायरका हुक्म मिला था तो मैं उस हुक्मको पापमय मानता। मैं उसकी तामील न करना अपना कर्त्तव्य समझता और उसकी अवहेलना करके उसी स्थानपर गोलीसे मारा जाना अधिक पसन्द करता। मैं सैनिकोंके लिए आवश्यक अनुशासनसे परिचित हूँ। मैं कहता हूँ यदि किसी सिपाहीको अपरसिपाकसरसे ऐसा हुक्म मिलता है जिसे वह धर्म अथवा देशके प्रति अपने कर्त्तव्योंके विपरीत पाता है तो निश्चय ही वह अपनी जिन्दगीका खतरा उठाकर उसकी अवहेलना कर सकता है। भले ही फिर उसे शिकायत करनेका भी अवसर न मिले; मगर वह अपने कर्त्तव्यका निर्णय तो कर ही सकता है। फौजी कर्त्तव्यका यह तकाजा है कि जो सैनिक ऐसे संकटके समयमें हुक्मकी तामील नहीं करता उसे गोली मार दी जाये और यदि वह गोलीसे मारा जाना पसन्द कर लेता है तो निश्चय ही हुक्मकी उपेक्षा करनेका उसे अधिकार है।

मैं इन शब्दोंके साथ आपसे अनुरोध करूंगा कि इस असहयोग प्रस्तावको हर्षध्वनिके साथ और परमात्मासे यह हार्दिक प्रार्थना करते हुए पास करें कि हमने यह प्रतिज्ञा कर ली है कि हम कांग्रेस के प्रस्ताव में घोषित विधियों द्वारा स्वराज्य प्राप्त करेंगे। आप यहाँसे जाते समय वे सारे मतभेद और कटुता या मनोमालिन्य भूल जायें जो पिछले तीन महीनों में हमें अपने सार्वजनिक जीवनमें नचाते रहे हैं। आप मन, वाणी और कर्मसे किसी प्रकारकी हिंसा न करें, चाहे वह सरकारसे सम्बन्धित हो, चाहे खुद हमीं लोगोंसे। मैं अपना दिया हुआ वचन दोहराता हूँ कि यदि आप केवल इतना ही करके दिखा सकें तो हमें अपने ध्येयकी प्राप्तिके लिए एक साल तो क्या, नौ महीने भी नहीं चाहिए। (जोरकी हर्षध्वनि तथा महात्मा गांधीका जय-घोष)[१]

[अंग्रेजीसे]
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३५वें अधिवेशनकी रिपोर्ट
  1. इसके बाद प्रस्ताव सर्वसम्मतिसे पारित हुआ और सभी संशोधन वापिस ले लिये गये।