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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

का प्रयत्न करता आया हूँ कि उस प्रस्तावमें किसी भी कर्त्तव्यका उल्लंघन[१] तो है ही नहीं। इससे प्रकट होता है कि प्रस्तावका वास्तविक तात्पर्य या तो समझा ही नहीं गया है या गलत ढंग से समझा गया है। कांग्रेसका प्रस्ताव मनुष्यकी अन्तरात्माको नहीं बाँधता है। उस प्रस्तावका मंशा कदापि व्यक्तिकी अन्तरात्माकी आवाजपर हावी होना नहीं है, और मैंने कांग्रेसके आदेशको भी कभी होआ नहीं माना। आज भी, मेरा ऐसा खयाल है कि जो विचार इस सम्बन्धमें मेरा है वही अधिकांश लोगोंका है, मैं यह साहसपूर्वक कह सकता हूँ कि मैं कांग्रेस अथवा उसके आदेशको कभी अन्धश्रद्धा की चोज नहीं बनाना चाहता। जहाँ कहीं मेरी अन्तरात्मा किसी बातको माननेको तैयार न होगी और कांग्रेसके आदेशका विरोध करनेका संकेत करेगी, वहाँ मैं निश्चित रूप से अन्तरात्माकी ही बात मानूंगा। इसलिए मैं अपने मुसलमान भाइयोंसे कहता रहा हूँ कि वह आत्माका मामला कदापि नहीं हो सकता। यदि एक भी मुसलमान यह सोचता है कि १६ वर्षके लड़के के लिए यह आत्मातक का प्रश्न नहीं हो सकता, उसे स्वयं कुछ सोचतेका अधिकार नहीं है उसे तो अपने माता-पिताकी आज्ञाओंका पालन ही करना चाहिए――यही तो उनके कथनका अभिप्राय निकलता है――तो वह बेशक ऐसा सोचे, ऐसा कहे; कांग्रेस उसे रोकेगी नहीं। लेकिन वह कांग्रेसका नाम लेकर ऐसा न कहे। कांग्रेस के प्रस्तावका अभिप्राय केवल इतना ही है। इसी प्रकार १२ सालवाले अथवा १६ सालसे नीची अवस्थाके लड़कोंके विषय में समझा जाये। कांग्रेस यह जरूर कहती है कि आप लोग १६ वर्षसे कम उम्रवाले बालकोंके समक्ष भाषण न दें; क्योंकि वे कोमल अवस्थावाले होते हैं और हम नहीं जानते कि उनकी अन्तरात्माकी आवाज प्रबल होती है या नहीं। इसलिए कांग्रेस आदेश देती है कि आप उनकी सभामें न तो कोई भाषण दें और न उनसे कोई व्यक्तिगत अपील करें। अपील की जाये तो उनके माता-पिता से। हम अभीतक इसी प्रणालीपर चले हैं और यदि हमें जनसाधारणकी आत्मा तथा सभ्य संसारके मतके सामने अपनेको निष्कलंक बनाये रखना है तो इसी प्रणालीका अनुसरण करते रहना अनिवार्य है। इसलिए मेरा निवेदन है हम इस प्रणालीको जो अपनाये हुए हैं सो ठीक और उचित है। यदि १२ सालका कोई ऐसा बालक है जिसे आत्मा-की आवाज सुनाई देती है तो उसे रोक सकनेवाली कोई शक्ति संसारमें नहीं है। लेकिन मैं उस लड़केकी आत्माको [जो नाबालिग है और] जिसके पिता मौजूद हैं जाग्रत नहीं करना चाहता, यह विशेषाधिकार उसके पिताका ही है। इस प्रस्तावका मतलब फकत इतना ही है। इसलिए मैं मुसलमान भाइयोंसे यह अनुरोध करता आया हूँ। मैंने यह तो उनसे पहले ही कह रखा है कि हम सामने आनेवाली हर बातको अन्तरात्माका मामला [२]नहीं कह सकते।

पं० मदनमोहन मालवीयने एक सन्देश भेजा है। मुझे आपको यह बताते हुए दुःख होता है कि वे बुखारसे पीड़ित हैं और रोग-शैयापर पड़े हुए हैं। उन्होंने मुझे कल यह

  1. मौलाना हसरत मोहानीके प्रस्तावका मौलाना मुहम्मद अलीने विरोध किया था।
  2. मौलाना हसरत मोहानीने बादमें अपना संशोधन वापस ले लिया। उन्होंने कहा कि गांधीजोंने जो मौजूँ सफाई दी है उससे मेरे संशोधनकी जरूरत नहीं रह गई।