पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०३
कांग्रेस

सतोंके आन्तरिक मामलोंमें हस्तक्षेप न करनेका उल्लेख किया गया था। यदि धाराका तात्पर्य यह होता कि कांग्रेस देशी राज्यों में रहनेवाले लोगोंकी भावनाओंको व्यक्त भी नहीं कर सकती तो वह उसे पास न करती। प्रसन्नताकी बात है कि एक प्रस्तावसे, जिसमें रियासतों में उत्तरदायी सरकारें स्थापित करनेका सुझाव दिया गया था, श्रोता-ओंको यह समझाया जा सका कि यह धारा रियासती प्रजाजनोंकी शिकायतों तथा आकांक्षाओंको व्यक्त करनेसे कांग्रेसको नहीं रोकती; लेकिन कांग्रेसपर उनके सम्बन्धमें वह कोई अमली कदम उठानेपर प्रतिबन्ध अवश्य लगाती है; उदाहरणके लिए, रियासतोंमें वहाँके राजाओंके किसी भी कार्यके विरुद्ध कांग्रेस प्रदर्शन नहीं कर सकती। कांग्रेस ब्रिटिश सरकारको आदेश देनेका दावा करती है; किन्तु अपने संविधानकी रूसे वह देशी रियासतोंके सम्बन्धमें वैसा दावा नहीं कर सकती।

इस प्रकार कांग्रेसने अधिकसे-अधिक विचार-विमर्श और चर्चाके बाद तीन महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। उसने स्पष्टतम शब्दोंमें पूर्ण स्वायत्त शासन प्राप्त करनेका अपना निश्चय जाहिर कर दिया है। अगर अब भी सम्भव हुआ तो वह इस लक्ष्यको अंग्रेजोंसे सम्बन्ध बनाये रखकर ही प्राप्त करेगी; किन्तु यदि आवश्यक हुआ तो उनसे अपना सम्बन्ध तोड़कर भी उसे प्राप्त करेगी। उसने संकल्प किया है कि वह इसमें केवल खरे तथा अहिंसात्मक साधनोंका ही उपयोग करेगी। कांग्रेसने अपने कामकाजकी व्यवस्था के लिए संविधान में मूलभूत परिवर्तन किये हैं और प्रतिनिधियोंकी संख्या स्वेच्छा- से सीमित करके त्यागका परिचय दिया है। अब भारतकी जनसंख्या के प्रति ५० हजार लोगोंके पीछे एक प्रतिनिधि चुना जायेगा। उसने इस बातपर जोर दिया है कि ये प्रतिनिधि उन लोगोंके वास्तविक प्रतिनिधि हों जो देशके राजनीतिक जीवनमें भाग लेना चाहते हैं। और इस खयालसे कि इसमें सभी राजनीतिक दलोंका प्रतिनिधित्व हो, उसने “एकल संक्रमणीय मत” का सिद्धान्त स्वीकार किया है। उसने विशेष अधिवेशनमें [१] पास किये गये असहयोगके प्रस्तावको पुनः पुष्ट किया है और साथ ही उसे हर तरहसे परिवर्धित किया है।[२] इसने अहिंसाकी आवश्यकतापर जोर दिया है और कहा है कि स्वराज्य प्राप्तिके लिए भारतीय राष्ट्रके विभिन्न अंगोंके बीच पूर्ण ऐक्य होना जरूरी है। इसलिए इसने हिन्दू-मुस्लिम एकतापर आग्रह किया है। हिन्दू प्रतिनिधियोंने ब्राह्मणों और अब्राह्मणोंके मतभेदोंको दूर करानेके लिए अपने नेताओंसे तथा अस्पृश्यताके जहरको दूर करनेके लिए अपने धर्माचार्योंसे अनुरोध किया है। कांग्रेसने स्कूल जानेवाले बच्चोंके माता-पिताओं तथा वकीलोंसे कहा है कि उन्होंने राष्ट्रके आह्वानपर काफी नहीं किया है, उन्हें इस दिशा में अधिक प्रयत्न करना चाहिए। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जो वकील वकालत छोड़ देनेके अनुरोधपर शीघ्र ही अमल नहीं करते और जो माता-पिता अपने बच्चोंको सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में भेजनेपर आग्रह रखते हैं, वे देखेंगे कि वे देशके सार्वजनिक जीवनसे बहिष्कृत होते जा रहे हैं। देशकी पुकार है कि भारतके सभी स्त्री और पुरुष

  1. कलकत्ता में सितम्बर १९२० में हुए विशेष अधिवेशनमें।
  2. नागपुर में स्वीकृत असहयोग सम्बन्धी प्रस्ताव; देखिए परिशिष्ट १।