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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अनुच्छेद ३०

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको उन सब मामलोंके विषय में नियम बनानेका अधिकार होगा जो संविधान में नहीं आ पाये हैं और जो उसके अनुच्छेदोंसे असंगत नहीं बैठते।

अनुच्छेद ३१

इस धारा के अन्तर्गत संविधानके अबतकके मूल सिद्धान्त तथा सारे अनुच्छेद――उनके द्वारा जितने कार्य किये जा चुके हैं उन्हें मान्य रखते हुए ――रद किये जाते हैं।

[अंग्रेजीसे]
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३५वें अधिवेशनकी रिपोर्ट
 

१०३. कांग्रेस

कांग्रेसका सबसे बड़ा[१] और महत्त्वपूर्ण अधिवेशन आया और सम्पन्न हो गया। वर्तमान शासन प्रणालीके विरुद्ध इतना बड़ा प्रदर्शन कभी नहीं हुआ था। सभापतिका[२] यह कथन बिलकुल सत्य ही है कि इस अधिवेशनमें सभापति और नेताओंने जनताका मार्गदर्शन नहीं बल्कि जनताने सभापति तथा नेताओंका मार्गदर्शन किया। सभामंचपर बैठे प्रत्येक व्यक्तिको यह स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि जनताने बागडोर स्वयं अपने हाथ में ले ली है। यों नेतागण तो इससे धीमी रफ्तारसे चलना ही पसन्द करते।

कांग्रेसने अपनी नई नीतिपर[३] पूरी तरह बहस करनेके लिए एक दिन दिया और फिर दो दिनकी खामोशीके बाद बड़ी एकता और दृढ़ताके साथ उसे स्वीकार कर लिया। केवल दो मत विरोधमें आये। असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावपर बहस करनेके लिए कांग्रेसने एक दिन दिया और प्रस्तावको अपूर्व उत्साहसे स्वीकार किया। उसने अधिवेशनका अन्तिम दिन संविधानकी शेष ३२ धाराओंको सुनने और उनपर विचार करनेके लिए दिया। मौलाना मुहम्मद अलीने ऊँची और साफ आवाजमें उन्हें पढ़ा और उनका शब्दशः अनुवाद किया। जो लोग अधिवेशनमें भाग ले रहे थे उन्होंने दिखा दिया कि वे धाराओंके वाचनको समझते जा रहे हैं, क्योंकि जब मौलाना साहब आठवीं धारापर पहुँचे तो विरोधकी आवाज उठी। इसमें कांग्रेस द्वारा देशी रिया-

  1. दिसम्बर १९२० के कांग्रेस अधिवेशनमें १४,५८२ प्रतिनिधि आये थे। इससे पहले जितने अधिवेशन हुए उनमें से किसी में प्रतिनिधियोंकी संख्या इतनी नहीं थी।
  2. सी० विजयराघवाचार्य (१८५२-१९४३); प्रमुख वकील और सक्रिय कांग्रेसी।
  3. कांग्रेसके नये संविधानका अनुच्छेद १, जिसमें कांग्रेसका उद्देश्य बताया गया था; देखिए पिछला शीर्षक।