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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वरूप में विश्वास नहीं है। और अब मैं मानता हूँ कि श्री पेनिंगटनको मेरा यह आश्वासन ठीक-ठीक समझ में आ जायेगा कि अगर में अंग्रेजोंसे भारतका सम्बन्ध बनाये रखूं तो उसका कारण हमें उनसे प्राप्त हो सकनेवाली अपमानजनक सुरक्षा नहीं होगी बल्कि सिर्फ यह विश्वास ही होगा कि मानव-स्वभाव मूलतः अच्छा है; और इसीलिए सिर्फ यह विश्वास ही होगा कि मानव-स्वभाव मूलतः अच्छा है; और इसीलिए सिद्धान्त और व्यवहार, दोनों ही दृष्टियोंसे समानताके आधारपर स्थित सहयोगपर मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। मुझे यह आशंका भी नहीं है कि अंग्रेजोंके भारतसे जाते ही दूसरे राष्ट्र भारतपर टूट पड़ेंगे, और उसका आधार भी मेरा यही विश्वास है। मान लीजिए, वे भारतपर टूट ही पड़ें तो भी भारत या तो असहयोगके इसी अद्वितीय अस्त्रसे उनका मुकाबला करेगा, या किसी राष्ट्रवादी प्रताप या अकबरको जन्म देगा जो कारगर ढंग से अनुशासित पशुबलका उपयोग करेगा, क्योंकि अंग्रेजोंके भारतसे चले जानेपर इस देशको अशक्त और पुंसत्वहीन बनाकर रखनेवाली ताकत हट जायेगी। श्री पेनिंगटन यह भी जाते हैं कि अन्य आक्रमक शक्तियोंकी अच्छाई न सही, अंग्रेजों के चले जानेके बाद उन शक्तियोंकी पारस्परिक ईर्ष्या ही इस अभागे देशको विदेशियोंके लोभका शिकार होने से बचा कर रखेगी। जहाँतक अहिंसाके कारगर होनेकी शक्ति में मेरे विश्वासकी बात है, वह तो न कभी कमजोर पड़ा है और न पड़ेगा। मैं पत्र-लेखकको आगाह कर देना चाहता हूँ कि वे ब्रिटिश अखबारोंमें छपे पक्षपातपूर्ण विवरणोंका विश्वास न करें। सभी जानते हैं कि अभीतक यह आन्दोलन बिलकुल ही अहिंसक ढंग से चलता रहा है। इक्के-दुक्के स्थानोंपर हममें आपस में ही कुछ हुल्लड़वाजी हुई है। लेकिन इस आन्दोलनको ऐसी हुल्लड़वाजीसे भी अलग रखनेकी हर चन्द कोशिश की जा रही है। इस आन्दोलनकी कमजोरियाँ बताते रहने से यह कहीं अधिक लाभदायक होगा कि पेनिंगटन यह प्रयत्न करें कि सरकार खिलाफत तथा पंजाव सम्बन्धी अन्यायोंका परिशोधन करनेके लिए गलत रास्तेको छोड़कर सही रास्ता अपनानेको मजबूर हो और भारतमें स्वराज्य स्थापित करनेके लिए एक सम्मेलन बुलाये।

असहिष्णुता

अब मैं भारतीय मित्रोंसे प्राप्त समाचारोंको लेता हूँ। बंगालके चार मुसलमानोंने एक पत्र भेजा है। एक हस्ताक्षरकर्ता वकील हैं। इन पत्रलेखकोंको इस आन्दोलनके सफल या इस उद्देश्य के न्यायसंगत होने में कोई सन्देह नहीं है। किन्तु उन्हें शब्दोंकी हिंसा के बाद लोगोंके कर्मकी हिंसापर भी उतारू हो सकनेकी आशंका है। उन्होंने उस असहिष्णुताका उल्लेख किया है, जो कहते हैं, श्री विपिनचन्द्र पाल और श्री फजलुल हकके[१]प्रति दिखाई गई। मैं उनकी इस बात से सहमत हूँ कि असहिष्णुता से हमें कोई लाभ नहीं हो सकता और अगर वह हिंसाका रूप धारण कर ले तो आन्दोलनको हानि पहुँच सकती है। में कह चुका हूँ कि जब किसी वक्ताकी बात अरुचिकर और बुरी लगे तो, निःसन्देह, हमें वहाँसे उठकर चले जानेका अधिकार है, लेकिन शोरगुल मचाकर

 
  1. एक राष्ट्रवादी मुसलमान नेता, जो बादमें द्वितीय विश्व युद्ध के समय बंगालके मुख्यमन्त्री बनाये गये थे।