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भी पसन्द नहीं है जिसमें व्यवस्था की गई है कि विदेशोंमें प्रचारार्थ कांग्रेस महासमिति, जब और जैसे चाहे, एक निश्चित रकम खर्च कर सकती है। हमें तो सारे पैसेकी देशमें ही जरूरत है। ४५,००० रुपये प्रचार और विज्ञापनबाजीमें फूँकनेके बदले मैं तो उस रुपयेके चरखे खरीदना या प्राथमिक पाठशालाएँ खोलना बहुत बेहतर समझूँगा। हर अच्छा काम खुद ही अपना विज्ञापन होता है। मैं आशा करूँगा कि अब भी वह सारा पैसा किसी ज्यादा अच्छे कामके लिए जरूर बचा लिया जायेगा। जहाँतक 'इंडिया' अखबारका सवाल है, हम उसके बिना ही अच्छे हैं। उस अखबारने हमें झूठी आशाएँ बँधा रखी थीं। यहाँ अंग्रेज जातिकी भी उतनी ही नैतिक जिम्मेदारी है, उसकी भी उतनी ही परीक्षा हो रही है, जितनी कि हमारी। अगर वे खुदगर्जी और बेईमानीसे भरे हुए अखबारोंके बहकावेमें आना चाहें तो हम क्या कर सकते हैं? पंजाबकी घटनाओं पर क्या हमने कांग्रेसकी रिपोर्ट[१] प्रकाशित नहीं की? मगर उसपर कौन यकीन करता है? श्री मॉण्टेग्युको[२] उसपर यकीन नहीं और ब्रिटिश प्रजा उनकी हाँ में हाँ मिलाती है। झूठी और मनगढन्त बातोंका प्रचार करनेमें सिर्फ अमेरिकी पत्रकार ही ब्रिटिश पत्रकारोंको मात दे सकते हैं। मैं हारनेके लिए इस होड़में शरीक नहीं होऊँगा, क्योंकि यह बराबरीका मुकाबला नहीं है।

सनसनी फैलानेवाली और असत्यपर आधारित पत्रकारिता और इसी कोटिकी सार्वजनिक जीवनकी बुराइयोंसे संघर्ष करनेके लिए हमें नये तरीके अपनाने होंगे। कांग्रेसने ब्रिटिश कमेटी और उसके मुखपत्र 'इंडिया' को बन्द करके इस दिशामें रहनुमाई की है।

दूषित पैसा

सिन्धके एक आदरणीय मित्रने कई सवाल पूछे हैं। पत्र व्यक्तिगत होनेके कारण मैं उनका नाम नहीं दे रहा हूँ। उनका पहला सवाल है:

असहयोग आन्दोलनके पहले चरणका एक कार्यक्रम यह है कि सरकारी और सरकारसे मदद पानेवाली शिक्षण संस्थाओंमें से विद्यार्थियोंको हटा लिया जाये। इसका कारण आप यह बताते हैं कि इन संस्थाओंको चलानेके लिए जो पैसा दिया जाता है वह चूँकि सरकारके पाससे आता है इसलिए दूषित है, जब कि वास्तवमें वह पैसा हमारे द्वारा दिया हुआ और हमारा ही है। फिर उसी सरकारसे शिक्षा, सफाई, जल-व्यवस्था आदि नगरपालिकाओंसे सम्बन्धित कामोंके लिए पैसा न लेनेकी कोई बात आन्दोलनके पहले चरणमें नहीं रखी गई है। तो क्या सरकार नगरपालिकाओंको शिक्षाके लिए जो पैसा देती है, सिर्फ वही दूषित है और नगरपालिकाओं द्वारा किये जानेवाले दूसरे कामोंके लिए दिया जानेवाला पैसा दूषित नहीं है?

१९–१६

  1. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १२८-३२२ ।
  2. भारत मन्त्री।