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भाषण : वड़तालकी सार्वजनिक सभामें


यह असहकार अहिंसापूर्ण है। इसमें लाठियाँ और धारियोंका प्रयोग नहीं किया जाता। इसमें सिर लिया नहीं दिया जाता है। अंग्रेजोंके प्रति तथा परस्पर अहिंसाका पालन करना आपका धर्म है।

आप धाराला नहीं हैं, ठाकरड़ा[१]——नहीं, ठाकोर हैं। आप ठाकोर बनना चाहते हैं तो टुच्ची-टुच्ची चोरियाँ आप नहीं कर सकते। पाटीदार[२] भी अपनेको क्षत्रिय कहते हैं लेकिन वे क्षत्रिय नहीं हैं क्योंकि वे चोरीमें हिस्सा बटाते हैं, चोरीका माल लेते हैं। वे क्षत्रियत्व भूल गये हैं। लेकिन आप तो क्षत्रिय-जैसे ही दीख पड़ते हैं, शस्त्र रखकर क्षत्रियत्वका प्रदर्शन करते हैं। मैं आपसे कहता हूँ कि आप जनताको दुःख पहुँचानके लिए क्षत्रिय नहीं हैं, उसकी रक्षा करनेके लिए क्षत्रिय हैं। दारू पीना, लोगोंको दुःख देना, स्त्रियोंपर कुदृष्टि रखना, किसीको लूटना, यह तो आपका धर्म नहीं है। आप ऐसा करेंगे तो लम्पट कहलायेंगे। लम्पटको क्षत्रिय नहीं कहा जा सकता। मैं धारालाको अपना भाई समझकर उनसे मिलने आया हूँ। मैं आपसे कहता हूँ कि कोई पाटीदार लम्पट हो जाये तो आप उसे त्याग दें। मैं आप लोगोंका ही हूँ; पाटीदारोंका भी हूँ। इन्हें क्षत्रिय जानकर मैं इनके साथ रहनेके लिए आया था। किन्तु जब मैंने सुना कि ये पाटीदार लूटका माल रखते हैं तब मुझे शंका हुई कि कहीं ये वीर होनेके बजाय कायर तो नहीं हैं? यदि आप पाटीदारोंके साथ सहयोग करते हुए स्वराज्यमें हिस्सा लेना चाहते हों तो आप इन सब कामोंको मनसे निकाल दीजिये।

धाराले ठाकोर तभी बनेंगे जब वे देशकी रक्षा करेंगे और सच्चा साधु वही है जो निर्भय होकर इनमें घूमे-फिरे, जो इनके साथ रहते हुए भी कमल-पत्रकी तरह निर्लेप रहे, इन्हें सदुपदेश दे। मैं साधु होनेका दावा नहीं करता लेकिन गृहस्थ होते हुए भी कहता हूँ कि यदि मैं इस कार्यमें व्यस्त न हो जाता तो मैं भीलों और अन्य जंगली जातियोंमें जाकर रहता। उन्हें शुद्ध, दयावान, बहादुर, सदाचारी, सत्यभाषी बननेका उपदेश देता और उनसे जनताकी रक्षा करवाता।

यहाँ अनेक साधु रहते हैं, उनसे मैं प्रार्थना करता हूँ कि जब इतना कहर बरपा हो तब जैसे मैं विद्यार्थियोंको स्वयंसेवक बननेके लिए कहता हूँ उसी तरह आप भी अपने अधिकारोंका उपयोग करते हुए देशके इस कार्यमें जुट जायें। लुच्चों, चोरों और लम्पटोंके दोषोंका हरण करना आपका धर्म है। जबतक आप ऐसा नहीं करते तबतक आपको साधु कहलानेका अधिकार नहीं है। यदि आप स्वराज्य चाहते हों, अर्थात् राम-राज्य, सत्ययुग चाहते हों, यदि आप भरतखण्डको धर्म-भूमि—— देवभूमि——बनाना चाहते हों तो पड़ौसीपर अत्याचार होता हुआ देखकर उसकी रक्षा करना आपका धर्म है। आपके पास यम-नियमके दिव्य अस्त्र हैं। आप यत्किचित् तपश्चर्या द्वारा बड़ी आसानीसे इन अस्त्रोंको सच्चा सिद्ध कर सकते हैं।

हमने प्रतिज्ञा की है कि हम सरकारसे न्याय नहीं माँगेंगे। अगर रावण मुझे आकर मार जाये तो रावणसे न्याय माँगने मैं कैसे जा सकता हूँ? मुझे तो हिम्मत

  1. गुजरातकी एक पिछड़ी हुई जाति।
  2. काश्तकार।