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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब आप बम्बईमें थे, आपने मुझे कुछ ऐसा आभास दिया था कि सिद्धान्त-सूत्रके[१]संशोधित रूपको आप पूर्णतः स्वीकार करते हैं और यह आपने श्री पटेल[२]और श्री केलकरपर[३]छोड़ दिया था कि नियमोंके अन्य हिस्सोंमें वे जैसे संशोधन करना चाहें करें। लेकिन मैं समझता हूँ कि अब और कुछ करना शेष नहीं है। अलबत्ता आपको कोई सुझाव देना हो तो दूसरी बात है।

महादेव देसाईके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ७४२०) से।

३. पत्र: परसूमल ताराचन्दको[४]

दिल्ली जाते हुए गाड़ीमें,

नवम्बर, १९२०


प्रिय श्री परसूमल,

मैंने आपका पत्र गाड़ी में ही पढ़ा। जब मैं ही परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूपमें आपके दुःखका कारण हूँ, तब शायद आपके प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करना मेरी गुस्ताखी होगी।

आपका भाई मेरे पास तब आया जब वह परीक्षामें न बैठनेके अपने इरादेपर अमल कर चुका था। निस्सन्देह उसे आपसे सलाह लेनी चाहिए थी; परन्तु उस दोषके अलावा, मैं उसके कामकी निन्दा नहीं कर सकता। यदि हमें अपने भरण-पोषणके लिए सरकारपर निर्भर रहना है तो हम कभी स्वतन्त्र नहीं होंगे। मेरे लिए यह बेबसी ही हमारी दुःखद स्थितिका सबसे करुण अंश है। मैं आशा करता हूँ कि जो लड़के कालेजोंको छोड़ रहे हैं, वे अपने माता-पिताकी अवज्ञा या अवहेलना नहीं करेंगे।

आपका,

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ७३३७) की फोटो-नकलसे।

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके नये संविधान में, जो दिसम्बर १९२० में कांग्रेसके वार्षिक अधिवेशनमें स्वीकार किया जानेवाला था।
  2. विठ्ठलभाई झवेरभाई पटेल (१८७३-१९३३); सरदार वल्लभभाई पटेलके बड़े भाई; वैधानिक ढंगसे लोहा लेनेवाले निर्भीक योद्धा; बम्बई विधान-परिषद् और उसके बाद शाही परिषद्के सदस्य; भारतीय विधान सभाके प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष।
  3. नरसिंह चिन्तामण केलकर (१८७२-१९४७); पत्रकार, राजनीतिज्ञ और साहित्यिक; तिलकके निकटके साथी; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके मन्त्री भी रहे; १९२० में कांग्रेस संविधानके संशोधन में गांधीजी की मदद की; स्वराज्यवादी दलके नेता।
  4. यह पत्र हैदराबादके वकील परसूमल ताराचन्दको उनकी इस शिकायत के जवाब में भेजा गया था कि उनके भाईने गांधीजीकी सलाहपर चलकर एम० बी० बी० एस० की अन्तिम परीक्षासे माता-पिता की सलाह लिये बिना ही अपना नाम वापस ले लिया था।