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४. पत्र: देवदास गांधीको

झाँसी

[२० नवम्बर, १९२०][१]

चि० देवदास,

हम लोग झाँसी अभी-अभी पहुँचे हैं। यहाँ थोड़ी-बहुत शान्ति मिल पाई। गंगा-धराव[२] तथा श्रीमती सरलादेवी[३] मेरे साथ ही हैं। ऐसा लगता है कि सरलादेवी कल दिल्ली होते हुई लाहौर जायेंगी परन्तु पक्का निश्चय तो पंडितजीका[४] पत्र आनेपर ही होगा।

तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक रहता होगा। धीरूसे मिलते रहना। यदि वह रहनेके लिए आश्रम पहुँचे तो उसे दाखिल कर लेना, अन्यथा उसे राष्ट्रीय विद्यालयके छात्रालयमें भरती करा देना । शहरमें उसका रहना जरा भी ठीक न होगा। रेवाशंकर-भाईका[५] भी ऐसा ही खयाल है। शंकरलालका भान्जा भी आश्रम पहुँचनेवाला है; उसके साथ उठना-बैठना तथा इस बातका खयाल रखना कि उसे आश्रममें बुरा न लगने पाये।

बेलाबेनसे परिचय बढ़ाना। उन्होंने मेरे मनपर बहुत अच्छा प्रभाव डाला है। मुझे यह महिला प्रामाणिक और साध्वी प्रतीत हुई है। उसके बाल-बच्चे भी ठीक लगे हैं परन्तु तुम और अच्छी तरहसे इन सब बातोंको परख सकोगे। मेरा इरादा इन लोगोंपर कामका भारी बोझ डालनेका नहीं है, फिर भी ऐसा हो सकता है कि अन-जाने ही उनके कंधोंपर भारी बोझ पड़ जाये।

हिन्दीमें जो संशोधन किये हैं उन्हें मैंने समझ लिया है परन्तु दोष तो तभी दूर होंगे जब संशोधन लगातार किया जायेगा। बोलते समय कोई भी व्यक्ति जानबूझकर गलतियाँ नहीं करता। बात यह है कि अशुद्धियोंकी ओर बारबार ध्यान आकर्षित करनेपर ही उनसे बचा जा सकता है।

  1. गांधीजी बम्बईसे झाँसीके लिए १९ नवम्बर, १९२० को रवाना हुए थे और २१ नवम्बरको दिल्ली पहुँचे थे।
  2. गंगाधरराव बालकृष्ण देशपांडे, कर्नाटकके प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता जो ‘कर्नाटक केसरी’ के नामसे प्रसिद्ध हैं।
  3. सरलादेवी चौधरानी; पं० रामभजदत्तकी पत्नी और रवीन्द्रनाथ ठाकुरकी भान्जी। वे १९१९ में गांधीजीकी अनुपायी बन गई। उन्होंने अपने पुत्र दीपकको पढ़नेके लिए साबरमती आश्रम भेजा था।
  4. पं० रामभजदत्त चौधरी, पंजाबके नेता और कवि।
  5. भीरेवाशंकर जगजीवन शवेरी, बम्बईके व्यापारी तथा गांधीजीक प्रशंसक।