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भाषण : कलकत्तामें

होकर चल रहे हैं। यही आत्मिक शिक्षाका आरम्भ है, यही उसका समापन। लेकिन यह देखते हुए कि हमारी शारीरिक शिक्षाकी उपेक्षा की गई है और यह देखते हुए कि भारत गुलाम इसलिए हो गया कि वह चरखेको भूल गया और उसने मामूलीसे तात्कालिक लाभके लिए अपने-आपको बेच दिया तो मुझे आप बंगालके नौजवानोंसे चरखा अपनानेकी बात कहनेमें कोई संकोच नहीं हो रहा है। अतः आपसे मेरा अनुरोध है कि आप चरखा चलानेकी शिक्षा प्राप्त करना और आपसे जितना बन सके उतना सूत तैयार करना ही परीक्षाके इस वर्षमें अपना मुख्य उद्देश्य और मुख्य प्रशिक्षण समझें। आप अपनी सामान्य शिक्षा स्वराज्यकी स्थापनाके बाद ही शुरू करें; बंगालका प्रत्येक नवयुवक और युवती अपना सारा समय और शक्ति कताईमें लगाना अपना पुनीत कर्त्तव्य माने। मैंने आपका ध्यान, गत महायुद्ध हमारे सामने जो उदाहरण पेश करता है, उसकी ओर आकृष्ट किया है।

आपमें से जिन लोगोंको इस बातकी जरा भी जानकारी होगी कि युद्धके[१] समय इंग्लैंडमें क्या हो रहा था, उन्हें स्मरण होगा कि उस समय हर लड़के और लड़कीने अपनी शिक्षा——सामान्य शिक्षा——स्थगित कर दी थी, और उन्हें ऐसे राष्ट्रीय कार्योंपर लगाया गया था जो युद्धके लिए आवश्यक थे। उन्हें दर्जीगिरी, बिल्ले बनाने आदिके मामूली काम दिये गये थे और यहाँ भी यह किया गया था। मुझे ऐसे अनेक घरोंकी याद है, जहाँ छोटे-छोटे बच्चोंको भी कामपर लगाया गया था। जब मैंने खेड़ाके नवयुवकोंसे माता-पिता के मना करनेपर भी युद्ध-क्षेत्रमें जानेके लिए कहा था उस समय सरकारने मेरे इस कामके साथ सहानुभूति व्यक्त की थी, उसकी ओर बहुत ध्यान दिया था और उसे पसन्द किया था।[२] लेकिन समय बदल गया है, और अब इस बातके लिए मेरी भर्त्सना की जा रही है कि मैंने उन नौजवानों और युवतियोंको जिनमें सोचने-समझनेकी क्षमता है, जिनकी अन्तरात्मा जागरूक है, अपने माता-पिताके आदेशकी भी अवहेलना करके अपनी अन्तरात्माके आदेशपर चलनेकी सलाह देनेका साहस दिखाया है। मैं बंगालके युवकों और युवतियोंसे कहता हूँ कि अगर आपकी आवाज, आपकी अन्तरात्माकी आवाज आपसे यह कहती है कि परीक्षाके इस वर्षके दौरान आपको अपनी पूरी ताकत और ध्यान स्वराज्य प्राप्त करनेमें लगाना चाहिए तो आपको मेरी इस बातका यकीन हो जायेगा कि जबतक देशका हर मर्द, हर औरत और हर बच्चा सूत नहीं कातने लगेगा तबतक विदेशी कपड़े अथवा विदेशी वस्तुओंका पूर्ण बहिष्कार असम्भव है। पैंतीस वर्षके लम्बे अर्सेमें कांग्रेस मंचसे बातोंका सूत तो बहुत काता गया है। आइए, अब हम सच्चा सूत कातें, जिसकी भारतको जरूरत है। मैं आपको बता दूँ कि अगर आप भूखोंको भोजन देना चाहते हैं, नंगोंको वस्त्र पहनाना चाहते हैं तो इस मुश्किलसे छुटकारा पानेका कोई रास्ता नहीं है——सिवाय इसके कि भारतके सब लोग चरखेको अपना लें। इसलिए मैं बंगालके नौजवानोंसे

 
  1. प्रथम विश्व-युद्ध १९१४-१८ ।
  2. यह बात जून १९१८ की है जब गांधीजीने प्रथम विश्व-युद्धमें ब्रिटिश सरकारकी सहायता करनेके लिए खेड़ामें रंगरूटोंका भरती-अभियान चलाया था।