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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तक पैसेका सवाल है, उन्हें ऐसे और भी वचन दिये जानेकी सम्भावना है, लेकिन पैसेकी दिक्कत तो कोई दिक्कत नहीं है। उन्हें कालेजकी स्थापनाके लिए उपयुक्त स्थानकी खोज करनी है। उन्हें अच्छे प्राध्यापकोंकी तलाश करनी है। मैं आप असहयोग करनेवाले विद्यार्थियोंसे अनुरोध करूँगा कि आप कालेजोंके पुराने मानदण्डको अपने सामने रखकर न चलें——वैसे ही जैसे हमारे सपनोंका यह स्वराज्य, जो चीज हमें आज प्राप्त है, उसकी तुच्छ नकल नहीं होगा। तो आप कृपया इस बातका ध्यान रखें कि राष्ट्रीय कालेजके रूपमें आपको जो चीज मिलेगी वह आजके कालेजोंकी तुच्छ नकल नहीं होगी। आप ईंट और गारेकी तरफ ध्यान नहीं देंगे। आप प्रेरणाके लिए बेंचों और कुर्सियोंकी ओर नहीं, बल्कि चरित्रकी ओर ध्यान देंगे; आप प्रेरणा पानके लिए अपने प्राध्यापकों और अपने अध्यापकोंके सच्चे चरित्रकी ओर देखेंगे। आप आवश्यक प्रेरणा और स्फूर्तिके लिए अपने दृढ़ संकल्पपर निर्भर करेंगे और मैं आपको वचन देता हूँ कि तब आप निराश नहीं होंगे। लेकिन अगर आप यह समझते हों कि श्री दास आपके कालेजके लिए शानदार इमारतकी व्यवस्था करेंगे, अगर आप यह मानते हैं कि वे आपको आज जो आराम और सहूलियत प्राप्त है वह सारा आराम और सहूलियत देंगे तो आपको निःसन्देह निराशा ही मिलेगी।

मैं आजकी शाम, आपको एक नया सन्देश, एक बेहतर सन्देश देने आया हूँ। अगर आप इस वर्षके बारह महीनोंके भीतर स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए कृत-संकल्प हैं, अगर आप एक वर्षके भीतर स्वराज्य प्राप्त करनेमें योग देनेके लिए कटिबद्ध हैं, तो मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि मैं आपको जो सलाह देनेवाला हूँ उसे स्वीकार करके आप उन लोगोंके मार्गको प्रशस्त करें, सुगम बनायें, जिन्होंने स्वराज्य-प्राप्तिके लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया है। अगर आप समझते हैं कि आपने जिन स्कूलों और कालेजोंको छोड़ दिया है ठीक उन्हीं कालेजोंके ढंगपर अपने नये स्कूलों और कालेजोंका संचालन करके स्वराज्य प्राप्त किया जा सकता है तो यह आपकी भारी भूल है। दुनियाके किसी भी देशने कठिनाइयाँ और कष्ट झेले बिना, बलिदान किये बिना स्वाधीनता प्राप्त नहीं की है——नया जन्म नहीं पाया है। और बलिदान क्या है? अपनी युवावस्थामें मैंने बलिदानका असली अर्थ यह समझा कि वह हमें पवित्र बनाता है, पावन बनाता है। असहयोग शुद्धीकरणकी एक प्रक्रिया है और अगर उस शुद्धीकरणके लिए हमें सामान्य जीवन-क्रममें व्यतिक्रम लाना जरूरी हो तो वैसा करना ही होगा। अगर मैं बंगालको तनिक भी समझता हूँ तो मैं जानता हूँ कि आप पीछे नहीं हटेंगे और असहयोग आन्दोलनमें शामिल होंगे।

हमारी शिक्षा दो बातोंमें बहुत ज्यादा दोषपूर्ण रही है। जिन लोगोंने हमारी शिक्षा-संहिताकी रचना की, उन्होंने हमारे शारीरिक और आत्मिक प्रशिक्षणकी उपेक्षा कर दी। आप असहयोग करने मात्रसे आत्मिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, क्योंकि असहयोगका मतलब इतना ही है, न अधिक न कम, कि यह सरकार जो बुरे काम कर रही है आप उनमें भाग लेनेसे इनकार कर रहे हैं। और अगर हम विवेकपूर्वक, सोच-समझकर बुराईसे अलग होते हैं तो इसका मतलब है, हम ईश्वरकी ओर उन्मुख