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१३७. टिप्पणियाँ

शिक्षा या आबकारी

पंजाबमें प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी श्री दौलतराम गुप्तके जिन ज्ञानवर्धक लेखोंको[१] हमने समय-समय पर छापा है, उनमें उन्होंने तथ्यों और आँकड़ोंकी मदद से यह दिखाया है कि जबसे वह सूबा अंग्रेजोंके आधिपत्यमें आया, तबसे वहाँकी शिक्षा कितनी पिछड़ गई है। इसमें तो कोई शक नहीं कि वहाँके ब्रिटिश गवर्नरों और अंग्रेज हाकिमोंकी लोगोंको सभ्य बनानेकी कोशिश शिक्षण संस्थाओंके लिए नुकसानदेह ही हुई है। वहाँके स्कूल शिक्षक और विद्यार्थी सभीको अंग्रेज प्रशासकके हाथों घोर हानि भुगतनी पड़ी है।

लेकिन अगर पंजाबमें शिक्षाकी प्रगति वहाँके हाकिमोंके लिए जहरके घूँट-जैसी थी तो शराबकी तिजारतमें होनेवाली वृद्धि शहद-जैसी मीठी थी। वहाँके नौजवान हाकिमोंके आगे दो लक्ष्य निर्धारित कर दिये गये थे : शिक्षाका गला घोंटो और आबकारीकी आमदनीको बढ़ाओ। पंजाबकी १९१९–२० की आबकारी रिपोर्टको देखनेसे पता चलता है कि वहाँकी आबकारीकी आमदनीमें कितनी बेहिसाब बढ़ती हुई। उस साल २५ लाख रुपयेकी बढ़ोतरी हुई और इससे कुल आमदनी १ करोड़ ३० लाख हो गई। सरकारकी इस आबकारी-नीतिके नतीजे जनताके लिए कई तरहसे घातक सिद्ध हुए हैं। आगे अंकोंमें हमारा विचार इस नीतिका भंडाफोड़ करने और साथ ही सरकारी आंकड़ोंके आधारपर यह दिखानेका भी है कि सरकारकी आबकारी नीति किस तरह बाकायदा शराबखोरीको बढ़ावा देती है। हमारे पाठक यह जानकर भौंचक्के रह जायेंगे कि कुछ प्रान्तोंमें शिक्षा-प्रसारकी सुविधाओंके मुकाबले शराब पीनेकी ज्यादा सुविधाएँ दी गई हैं।

धार्मिक निष्पक्षता

सरकारकी कपोल-कल्पित धार्मिक तटस्थताके बारेमें श्री फॉयके वक्तव्यका[२] अपने कुछ नाराजी-भरे पत्रमें जवाब देते हुए श्री सीतारामने उनकी बात माननेसे इनकार किया है। वे कहते हैं :

सरकारसे अच्छी खासी मदद लेनेवाली शिक्षण संस्थाएँ लाजिमी तौरपर 'बाइबिल' पढ़ाती हैं। हिन्दू, मुसलमान और पारसियों द्वारा दिये जानेवाले करोंमें से काफी पैसेका लाभ देश-भरमें फैली ईसाई संस्थाएँ उठाती हैं।

यह, और ऐसे ही दूसरे बहुत-से उदाहरण देकर बताया जा सकता है कि विभिन्न धर्मोके प्रति अपने व्यवहारमें भारतकी सरकार निश्चय ही सन्देहसे परे नहीं है।

  1. दौलतराम गुप्त द्वारा लिखे ये लेख यंग इंडियाके ८ दिसम्बर, १९२० से २६ जनवरी, १९२१ तकके अंकोंमें छपे थे।
  2. श्री फॉयके पत्रपर गांधीजीकी टिप्पणीके लिए देखिए "टिप्पणियाँ", १२–१–१९२१ ।