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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सरकारको हम पापी मानते हैं, राक्षसी मानते हैं। यदि हम पापमुक्त हो जायें तो सरकार ऐसे ही गिर पड़ेगी जैसे सूखे पत्ते झड़ जाते हैं; नहीं तो फिर वह पश्चात्ताप करके पुण्यवान बनेगी।

तब हम किन पापोंसे सरकारको टिका रहे हैं? यह हम देख ही चुके हैं कि वे पाप हैं——स्कूल, अदालतें, खिताब और धारासभायें। सचमुच देखा जाये तो ये वस्तुएँ स्वतः पाप नहीं हैं, तो पापकी निशानियाँ हैं। सरकार पुण्यवान हो तो हम उसके हाथों पढ़ें, न्याय प्राप्त करें और सम्मान लें। यदि हम आज उन्हें छोड़ते हैं तो हमें अपनी पापी आदतोंको भी छोड़ना ही पड़ता है।

इसलिए मुख्य बात तो यह है कि हम अपनी पापी आदतोंको छोड़ें। जनता शराब पिये, जुआ खेले, चोरी करे, व्यभिचार करे और द्वेष करे तो असहयोग नहीं चल सकता, क्योंकि इन आदतोंका लाभ उठाकर ही सरकार राज्य चलाती है।

शराबकी आदत बड़ी भयंकर आदत है। यदि हम इस आदतको छोड़ दें तो करोड़ों रुपया लोगोंके घरोंमें रहे और अनेक अत्याचार मिट जायें। मेरी मान्यता है कि अंग्रेजोंकी राजनीतिमें जो निर्दयताका तत्त्व है, यदि वे शराब न पीते होते तो वह तत्त्व कदापि न होता। जिसे शराबकी लत नहीं है, वह मनुष्य कभी पूरी तरहसे होशहवारा नहीं खो सकता। शराब चाहे कितनी ही कम क्यों न पी जाये, उसका थोड़ा-बहुत नशा चढ़े बिना कदापि नहीं रह सकता। और इससे बुद्धिपर कुछ-न-कुछ पर्दा अवश्य पड़ता है तथा मनुष्यकी अन्तरात्माकी आवाज मन्द अवश्य पड़ जाती है। इसलिए हममें से जो लोग त्यागकी शिक्षा देने सामने आ रहे हैं उन्हें जनताकी शराबकी लत छुड़ानी चाहिए। शराब पीनेवाले लोगोंके लिए प्रस्ताव निरर्थक है क्योंकि वे तो सार्वजनिक जीवनमें कोई भाग लेते ही नहीं। फिर भी उनपर ध्यान देनेकी आवश्यकता तो अवश्य है। चायकी आदत छुड़वानेके लिए भी अनेक स्थानोंपर बहुत प्रयत्न किये गये हैं। यह आन्दोलन, जिस हदतक जोर-जबर्दस्ती नहीं होगी, उसी हदतक सफल हो सकता है। हम मारपीट करके लोगोंसे शराब नहीं छुड़वाना चाहते; बल्कि शर्मिंदा करके और समझा-बुझाकर हमें उनसे शराब छुड़वाने का प्रयत्न करना चाहिए। हममें से कुछ लोगोंको चाहिए कि वे अपने-अपने शहरोंमें शराबके दुकानदारोंके पास जाएँ और उन्हें समझाएँ एवं उनसे दूसरे धन्धे करनेकी प्रार्थना करें। उन्हें शराब पीनेवाले लोगोंकी जात-बिरादरीकी मार्फत भी प्रयत्न करना चाहिए। यह काम वैसे कठिन है; लेकिन लोकमतके आगे कुछ भी कठिन नहीं होता। जब लोकमत शराबको सहन करना बन्द कर देगा, शराब उसी घड़ी बन्द हो जायेगी। अभी तो हमें अपने पड़ोसीकी चिन्ता ही नहीं है। एक राष्ट्र बननेका अर्थ है तीस करोड़ लोगोंका एक परिवार बनना। अगर एक भारतीय भी भूखों मरता है तो हम सब भूखे मरते हैं, ऐसा मानना और उसके अनुरूप आचरण करना ही एक राष्ट्रीयता है। इसका सबसे अच्छा रास्ता यही है कि हरेक मनुष्य अपने पास-पड़ोसकी देखभाल करे अर्थात् वह आसपासके लोगोंकी सेवा आरम्भ करे। यदि हम इस पद्धतिसे काम करें तो हम शराबकी दुकानोंको बहुत ही कम समयमें बन्द करा सकते हैं।