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असहयोग अर्थात् आत्मशुद्धि

हूँ। लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि आप मुझे आँख मूँदकर और पागल बनकर प्रेम करें। मैं चाहता हूँ कि आप ज्ञानपूर्वक भारतसे प्रेम करें। जब आपका प्रेम मेरे लिए इस तरहका होगा, तभी मैं भारतको स्वतन्त्र करा सकूँगा। मैं आपसे फिर प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरी बातको ध्यानमें रखें और ईश्वरसे प्रार्थना करें कि वह आपको और मुझे स्वराज्य लेनेकी शक्ति दे एवं आप लोगोंको सुखी बनाये।

[अंग्रेजीसे]


अमृतबाजार पत्रिका, ३०–१–१९२१


हिन्दू, १–२–१९२१
 

१४१. असहयोग अर्थात् आत्मशुद्धि

कांग्रेसके प्रस्तावमें[१] असहयोगको आत्मशुद्धिका साधन और यज्ञ माना गया है। यदि असहयोगका यह अर्थ न हो तो असहयोग पाप ही माना जायेगा। पुण्य और पापके बीच मेल नहीं होता, अंधेरे और उजालेका मेल नहीं होता। इसी तरह लोकहित विरोधी सरकारसे भी जनताका मेल नहीं हो सकता। हम असहयोगसे यह सिद्ध करते हैं कि अत्यन्त धूर्ततापूर्ण राजनीति भी, अगर जनता उसे सहन न करे और उसमें अपना योग न दे, तो टिक नहीं सकती।

हम विदेशी कपड़के लालचमें पड़ जाते हैं, इसीलिए हिन्दुस्तानमें उसकी खपत हो पाती है; हमें खिताबोंका लोभ है, इसीलिए सरकार हमें घूसकी तरह खिताब देकर अधिकार जमाती है; हम उसकी सनदोंके मोहमें पड़ते हैं इसीलिए सरकार हमारी शिक्षापर कब्जा करके हमें बताती है कि हममें स्वतन्त्र रूपसे शिक्षाकी व्यवस्थातक करनेकी शक्ति नहीं है। हम अत्याचारी अमलदारोंके हुक्मके ताबेदार रहते हैं इसीलिए पंजाबमें अब भी वैसे ही अमलदारोंकी सत्ता चल रही है; हम शराब पीते हैं इसीलिए सरकार शराबसे करोड़ों रुपया कमा सकती है; हम लड़ते हैं, इसीलिए सरकारकी अदालतें चलती हैं। मतलब यह है कि सरकारके पापोंमें हमारा योग कोई कम नहीं है। जिस दिन लोकमत शुद्ध हो जायेगा और जनता पापसे मुक्त होनेका निश्चय कर लेगी उसी दिन सरकारके सिरसे ताज उतर जायेगा। इस ताजको तो हम ही टिकाये हुए हैं। एक लाख अंग्रेज अपने बलसे ही तीस करोड़ लोगोंपर राज्य नहीं करते। हम अनेक लाख भारतीय जाने-अनजाने इन एक लाख अंग्रेजोंकी पूरी-पूरी मदद कर रहे हैं और अन्य करोड़ों लोग इस स्थितिको सहन कर रहे हैं। सरकारका अर्थ है, जो राज्यतन्त्र चला रहे हैं और जो उसको चलानेमें उनकी मदद कर रहे हैं, वे लोग। हम लोग जब यह मदद बन्द कर देंगे तब इस सरकारका पतातक नहीं चलेगा।

 
  1. असहयोगपर, देखिए परिशिष्ट १ ।
१९–१९