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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

द्वारा मुक्त करना चाहते हैं तो हमें आत्मशुद्धिका महत्व समझना होगा, पश्चिमके अनुकरणका मोह छोड़ना पड़ेगा। पश्चिमकी पद्धतिको त्याग कर ही हम स्वराज्य प्राप्त करेंगे। मैं पश्चिमकी पद्धतिसे स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव मानता हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७–१–१९२१

 

१४२. टिप्पणियाँ

ऋषियोंके वंशज[१]

इस लेखको मैं बिना सोचे-समझे ही प्रकाशित नहीं कर रहा हूँ। दो दिनके अनुभवके आधारपर यह लिखा गया है। इसमें क्षणिक आवेशका होना सम्भव है। लेकिन लेखकने चरखेको जो पदवी प्रदान की है वह उचित है, मैं स्वयं तो ऐसा मानता हूँ; इसलिए इस लेखको प्रकाशित करते हुए मैं इसमें कही गई बातोंकी जिम्मेदारी अपने सिरपर ले लेता हूँ। आश्रमके वर्णनमें जिस अतिशयोक्तिसे काम लिया गया है वह आश्रमवासियोंके सामने आदर्शके रूपमें रहे, इस विचारसे मैं उसे भी प्रकाशित कर रहा हूँ। इस आदर्शके अनुरूप आचरण न होनेपर यह लेख हमें शरमिन्दा करेगा। 'तपोवन' नामका सुझाव एक मित्रने दिया था। इस नामको मैं आज भी अनुपयुक्त मानता हूँ। आश्रममें यदि सत्यका आग्रह बना रहे तो मुझे सन्तोष होगा और इससे देशको भी अवश्य सन्तोष होगा, ऐसी मेरी अविचल श्रद्धा है। फलतः यह आश्रम एक ही नामको ग्रहण कर सकता है और वह है सत्याग्रह आश्रम।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७–१–१९२१

 

१४३. भाषण : कलकत्तामें तिलक राष्ट्रीय विद्यालयके उद्घाटनपर

२७ जनवरी, १९२१

इसके बाद श्री गांधीने सभामें भाषण देते हुए आरम्भमें विद्यालयकी सफलताके लिए कामना की। बादमें उन्होंने पंजाबमें और खिलाफतके सम्बन्धमें किये गये अन्यायोंकी चर्चाकी और तदनन्तर चरखेकी अमोघतापर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला और कहा कि विद्यालयके अधिकारियोंको ध्यान रखना चाहिए कि वहाँ सूत कातनेपर विशेष जोर दिया जाये ताकि लड़के इस कलामें कुशल हो सकें। उन्होंने कहा कि हिन्दू

  1. यह टिप्पणी उपर्युक्त शीर्षकसे किसी व्यक्ति द्वारा, जिसने अपनेको ऋषियोंकी इन सन्तानोंका बन्धु कहा है, लिखे लेखके साथ छपी थी। उक्त व्यक्ति एक दिन आश्रममें ठहरा था और उससे प्रभावित होकर उसने इसे तपोवनकी संज्ञा देते हुए यह प्रशंसापूर्ण लेख लिखा था।