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पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको

और मुसलमान लड़कोंको देवनागरी और उर्दू दोनों लिपियाँ सिखाई जायें। छात्रोंको सम्बोधित करते हुए वे बोले : आप लोग मेरी सलाह मानिये। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि आप मेरी सलाह मानेंगे तो भारतको स्वराज्य शीघ्र ही मिल जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २८–१–१९२१
 

१४४. पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको

कलकत्ता
२९ जनवरी, [१९२१][१]

प्रिय चार्ली,

तुमने मेरे नाम प्रेमपत्रोंकी भरमार कर दी। मैंने जवाब देनेमें लापरवाही की, लेकिन तुम्हारा खयाल मुझे सदा बना रहता है। मैं तुम्हारे लिए सदा प्रार्थना करता रहता हूँ। तुम्हें बीमार[२] तो हरगिज नहीं पड़ना चाहिए। चाहता हूँ कि तुम स्वस्थ होकर काममें जुट जाओ। बिस्तरमें पड़े-पड़े ही तुमने कितना सारा काम कर डाला है।[३] मैं अधिकाधिक अनुभव कर रहा हूँ कि प्रार्थना कर्म है और मौन सर्वोत्तम भाषण तथा सर्वोत्तम तर्क। अस्पृश्योंके सम्बन्धमें तुम्हारी चिन्ताके बारेमें मैं यही कह सकता हूँ।

मैं इस सारी समस्यापर एक भारतीय और एक हिन्दुकी दृष्टिसे विचार करता हूँ, तुम एक अंग्रेज और ईसाईकी तरह सोचते हो। तुम्हारी दृष्टि इस सम्बन्धमें तटस्थ प्रेक्षककी है, जब कि मैं इससे स्वयं प्रभावित और पीड़ित हूँ। तुम धीरज रख सकते हो परन्तु मैं नहीं। तुम एक तटस्थ सुधारकके रूपमें अधीर भी हो सकते हो किन्तु मुझे एक पापीके रूपमें, यदि मैं उस पापसे मुक्त होना चाहूँ तो धैर्य ही रखना चाहिए। जलियाँवाला बागमें अंग्रेजोंने जो पाप कर्म किया मैं उसकी मनमानी चर्चा कर सकता हूँ; लेकिन एक हिन्दूके रूपमें हिन्दुओंके उस पापकी उसी तरह चर्चा नहीं कर सकता जो उन्होंने अस्पृश्योंके प्रति किया है। मुझे हिन्दू डायरों [अत्याचारियों] से निबटना है। मुझे कार्यक्षेत्रमें उतरना ही चाहिए और मैंने सदा ऐसा ही किया है। जब तुम्हारी भावना प्रबल रूप धारण कर लेती है तो उस समय तुम केवल काम करते हो; बातें नहीं। तुम चूँकि गुजराती नहीं जानते इसलिए तुम्हें यह नहीं मालूम कि गुज-

  1. इस पत्रमें दी गई बातोंसे पता चलता है कि यह १९२१ में लिखा गया था और उस वर्ष २९ जनवरीको गांधीजी कलकत्तामें थे।
  2. जनवरी १९२१ में एन्ड्र्यूजको सख्त इन्फ्लूएंजा हुआ था।
  3. फीजीसे जो प्रवासी आये थे और जिन्हें कलकत्ताको गोदियोंके पास रुक जाना पड़ा था उनसे मिलनेके बाद एन्ड्र्यूजने बिस्तरमें पड़े-पड़े ३५ पत्र, तार और लेख एक दिनमें बोलकर लिखवा दिये थे।