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सनातनी हिन्दू कौन है?

क्षत्रियधर्मका पालन करनेवाला वैश्य अगर जन्म-चक्रमें पड़े तो वह दूसरे जन्ममें भले ही ब्राह्मण अथवा क्षत्रियके घरमें जन्म ले, इस जन्ममें तो उसे वैश्य ही रहना होगा; और यही सच भी है। हिन्दू-धर्ममें समय-समयपर अन्य धर्मं आकर मिलते रहते हैं लेकिन वे उसी कालमें हिन्दू-धर्मके रूपमें स्वीकार्य नहीं हुए। हिन्दू-समाज एक दरिया है, उसके गर्भमें समाकर सब कचरा साफ हो जाता है, शान्त हो जाता है। ऐसा होता ही रहा है। इटली, ग्रीस आदि देशोंके लोग आकर हिन्दू-धर्ममें समा गये हैं; लेकिन उन्हें किसीने हिन्दू बनाया नहीं था, कालान्तरमें अपने-आप ऐसी कमोबेशी होती रही। भगिनी निवेदिता[१]-जैसे लोगोंके हिन्दूधर्म स्वीकार कर लेनेपर भी हम उन्हें हिन्दू के रूपमें नहीं पहचानते और उनका बहिष्कार अथवा तिरस्कार भी नहीं करते। हिन्दू 'धर्म' में आनेकी किसीको कोई आवश्यकता महसूस नहीं होती, हिन्दु धर्मका 'पालन' सब कोई कर सकते हैं।

वर्णाश्रम एक कानून है, उसका व्यावहारिक रूप जाति है। जातियोंमें कमती-बढ़ती होती रहती है, उनकी उत्पत्ति और उनका लय होता ही रहता है। व्यक्ति स्वयं हिन्दू-धर्मका परित्याग कर सकता है लेकिन व्यक्तिका बहिष्कार जाति ही करती है। जाति-बहिष्कार एक प्रकारका दण्ड है और यह सब जातियोंके लिए सुलभ होना ही चाहिए।

यह निःसन्देह जरूरी है कि बहुत सारी जातियाँ मिलकर एक हो जायें और इस प्रकार जातियोंकी संख्या कम हो जाये? जाति परिषदें हिन्दू-धर्मको आघात पहुँचाये बिना भी यह काम कर सकती हैं। अनेक वणिक जातियाँ एक हो जायें, उनमें परस्पर शादी-ब्याह होने लगें तो इससे धर्मको कोई नुकसान नहीं पहुँचता।

पानी, अन्न और शादी-ब्याहके सम्बन्धमें हिन्दू जिन नियमोंका पालन करते हैं सो कोई हिन्दु-धर्मके आवश्यक चिह्न समझकर नहीं। हिन्दू-धर्ममें संयमको प्रधानपद दिये जानेके कारण पानी, भोजन और विवाह आदि सूक्ष्म प्रतिबन्धोंका पालन किया जाता है। इसे मैं निन्द्य नहीं मानता तथापि जो इसका पालन नहीं करते उन्हें मैं धर्म-भ्रष्ट हुआ भी नहीं समझता। प्रत्येक स्थानपर पानी, भोजन, विवाह आदिका व्यवहारत रखने की बातको मैं शिष्टाचार मानता हूँ, उसमें आरोग्य और पवित्रताकी रक्षा निहित है; लेकिन तिरस्कारके रूपमें किसीके घरके भोजन अथवा पानीका त्याग करना हिन्दू-धर्मके विरुद्ध है, ऐसी मेरी मान्यता है। अनुभवपर आधारित मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि परवर्ण अथवा परधर्मके व्यक्तिके साथ शादी-विवाह अथवा खाने-पीनेपर जो प्रतिबन्ध है वह हिन्दू-धर्मकी संस्कृतिके [पौधेके] लिए बाड़ है।

पूछा जा सकता है, ऐसा माननेपर भी मैं मुसलमानोंके यहाँ भोजन क्यों कर लेता हूँ? इसलिए कि मैं उनके यहाँ भोजन करते हुए भी संयम-धर्मका पूरा पालन कर सकता हूँ। पकी हुई चीजमें डबलरोटी ही लेता हूँ क्योंकि डबलरोटी पकानेकी क्रिया बिलकुल शुद्ध है और जिस तरह खीलको किसी भी जगह पकाकर खाया जा सकता है उसी प्रकार रोटी (चपाती नहीं) चाहे जिस स्थानसे ली जा सकती है।

  1. मार्केट इ॰ नोबल, (१८६७–१९११); विवेकानन्दकी एक अमेरिकी शिष्या।