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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चेतना पैदा हो गई है, उनमें जो शक्ति आ गई है उसे कायम रखा जाना चाहिए। मद्यपानकी उनकी कुटेव छुड़वानेके लिए किसी तरहकी हिंसाका प्रयोग नहीं करना चाहिए। हम उनसे इन बुराइयोंको केवल उनके साथ असहयोग करके, अर्थात् उनसे कोई सहायता न ले कर या उन्हें कोई सहायता न देकर छुड़वा सकते हैं। यदि मुसलमान किसीको जबर्दस्ती मुसलमान बनाते हैं तो मैं उनसे भी ऐसे ही लडूँगा जैसे सरकारसे लड़ता हूँ। यदि मेरा पुत्र शराब पीने लगे तो मैं उसे मारने-पीटनके बजाय अपने घरसे निकल जानेके लिए कहूँगा और फिर उसे किसी भी प्रकारकी सहायता नहीं दूँगा और इस प्रकार उससे शराब पीनेकी लत छुड़वाऊँगा। मुझे उसके विरुद्ध हिंसाका आश्रय लेनेका वस्तुतः कोई अधिकार नहीं है। इसलिए यदि आप सब इस बातको भली-भाँति समझ लें और उसपर आचरण करें तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हमें अगले सितम्बरतक स्वराज्य मिल जायेगा। मैंने सदा ही बिहारको भूमिको पवित्र माना है। म चम्पारनमें बहुत दिनोंतक किसानोंके बीच रहा हूँ।[१] यदि वहाँ किसी भी जगह कोई हिंसा हो तो उससे मुझे बहुत दुःख होगा।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ९–२–१९२१

 

१६५. टिप्पणियाँ

खद्दरका दुरुपयोग

एक मित्र इस तथ्य की ओर ध्यान खींचते हैं कि खादी पहननेवाले बहुत-से लोग खद्दरको मगरूरी, बदतमीजी——और सबसे बुरी बात तो यह है कि धोखेबाजीका परवाना समझते हैं। इन मित्रका कहना है कि ऐसे लोग असहयोग और सत्यकी भावनासे कोसों दूर हैं। उनका खद्दर पहनना महज एक ढोंग है——अपनी धोखाधड़ीपर पर्दा डाले रहनेकी सिर्फ एक चाल! यह सब हो सकता है, खास तौरपर इस संक्रमण कालमें, जब कि खद्दर पहनना फैशन बनता जा रहा हो। इन पत्र लिखनेवाले भाईसे मुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि खद्दरके ऐसे दुरुपयोगको भूलसे भी खद्दरके इस्तेमालके विरोधका कारण नहीं बनाया जाना चाहिए। आजकी हालतमें जो ऐसा मानते हैं कि हिन्दुस्तानी मिलें देशकी जरूरतके लायक कपड़ा नहीं बनाती और इसलिए घरोंपर कपड़ा बुनकर इस जरूरतको जल्दीसे-जल्दी पूरा करना चाहिए तथा घरमें कताईको सर्वप्रिय बनाकर ही यह किया जा सकता है, उन सबके लिए खद्दर पहनना लाजिमी है। देशकी सबसे बड़ी आर्थिक जरूरतको व्यवहारमें मंजूरी देनेसे अधिक खद्दरके इस्तेमालका और कोई मतलब नहीं है। एक बुरा आदमी भी इस जरूरतको मान सकता है और उस हालतमें वह भी खद्दर पहनने का पूरा-पूरा हकदार है। और अगर कोई सरकारी जासूस लोगोंको धोखा देनेके लिए खद्दर पहनता है तो मैं उसका भी स्वागत करूँगा, क्योंकि उससे देशको कुछ-न-कुछ आर्थिक लाभ तो होता ही है।

  1. सन् १९१७ में चम्पारन-सत्याग्रहके समय।