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सबसे बड़ी बात

वह न किया होता तो हमारे हाथों न जाने कितने स्त्री-बच्चे मार दिये गये होते। अगर हम इतने क्रूर है कि निर्दोष स्त्रियों और बच्चोंका खून बहाना चाहते हैं तो हम इसी लायक हैं कि इस दुनियासे हमारी हस्ती मिटा दी जाये। किन्तु बातका दूसरा पक्ष भी है। इस भली महिलाको ऐसा लगा ही नहीं कि हम दानवोंके हाथोंसे त्राण पानेके लिए अंग्रेजोंको जलियाँवालामें जो मूल्य देना पड़ा वह बहुत भारी था। उन्होंने मानवता खोकर अपनी सुरक्षा प्राप्त की। सरकारने जनरल डायरपर बेमनसे दोषारोपण किया और सर माइकेल ओ'डायरने भी उनकी दुष्प्रवृत्तियोंको सर्वथा क्षमा कर दिया, क्योंकि दानवोंके इस देशको अंग्रेज छोड़ना नहीं चाहते——भले ही उन्हें हममें से एक-एकको मौतके घाट उतार देना पड़े। यह अच्छी तरहसे समझ लिया जाना चाहिए कि अगर हम अमृतसरकी भाँति फिर उन्मत्त हो गये तो जलियाँवालासे भी अधिक भयंकर काण्ड होगा।

क्या हम डायरशाही अथवा ओ'डायरशाहीका अनुकरण करेंगे, जब कि हम इसकी निन्दा कर रहे हैं? हमें अपनी आधार-शिलाके लिए हिंसा और दानवताको नहीं, अहिंसा और धार्मिकताको अपनाना है। हम कार्यकर्त्ताओंको अपने कर्त्तव्यका स्पष्ट बोध होना चाहिए। 'स्वराज्य अपनी ओरकी समस्त हिंसक प्रवृत्तियोंको नियन्त्रित करनेकी हमारी योग्यतापर निर्भर करता है।' इसलिए अगर लोगोंमें हिंसक प्रवृत्ति मौजूद है तो एक वर्षके भीतर स्वराज्य नहीं मिल सकता।

अतः हमें धरना नहीं देना चाहिए, हमें किसी व्यक्तिके खिलाफ "शर्म, शर्म"के नारे नहीं लगाने चाहिए; हमें अपने देशवासियोंको अपने मार्गपर लानेके लिए बल-प्रयोग नहीं करना चाहिए। हमें उन्हें वहीं स्वतन्त्रता देनी चाहिए जो हम अपने लिए माँगते हैं। हमें जनताको बहकाना नहीं चाहिए। फैक्टरी-मजदूरों तथा किसानोंका राजनीतिक उपयोग करना खतरनाक है——इसलिए नहीं कि हम इसके हकदार नहीं, वरन् इसलिए कि हम इसके लिए तैयार नहीं है। हम एक दीर्घ कालसे उनके (किताबी शिक्षणसे भिन्न) राजनीतिक शिक्षणकी उपेक्षा करते आये हैं। हमारे पास इतने ईमानदार, समझदार, विश्वसनीय और साहसी कार्यकर्ता नहीं हैं कि हम अपने इन देशभाइयोंको प्रभावित कर सकें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९–२–१९२१