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१६७. एक नगरपालिकाका साहसपूर्ण कार्य

पाठक अन्यत्र नडियादकी नगरपालिका और बम्बई सरकारके यानी बम्बई सरकारके प्रतिनिधिरूप खेड़ा-जिलाधीशके बीचका पत्रव्यवहार[१] देखेंगे। नडियाद, खेड़ा जिलेमें ही है। वह गुजरातका एक महत्वपूर्ण शहर है। उसकी जन-संख्या ३५,००० है। उसकी नगरपालिकाका अध्यक्ष निर्वाचित है, और उसमें निर्वाचित सदस्योंका ही बहुमत भी है। नडियाद अपने शिक्षाकार्यके लिए प्रसिद्ध है और उसे गुजरातके कतिपय सर्वोत्तम शिक्षित सपूतोंको उत्पन्न करनेका गौरव प्राप्त है। शहरमें दो हाईस्कूल हैं। उसके द्वारा संचालित अनुदान प्राप्त हाईस्कूलको राष्ट्रीय [हाईस्कूलका] रूप दे दिया गया है। नगरपालिका अनेक प्राथमिक शालाएँ चलाती है; उनमें पाँच हजारसे अधिक बच्चोंको शिक्षा दी जाती है।

नागरिकोंके समक्ष सभी प्राथमिक शालाओंको राष्ट्रीय रूप देनेका प्रश्न था। करदाताओंने अपने बच्चोंको इन शालाओंसे निकाल लेनेके बजाय एक प्रस्ताव पास किया, जिसके द्वारा उन्होंने नगरपालिकासे प्राथमिक शालाओंको राष्ट्रीय रूप देनेकी माँग की। वे [सरकारसे] २१,००० रुपये वार्षिक अनुदान प्राप्त करती थीं, और इसलिए, जैसा कि स्वाभाविक है, शिक्षा विभागके नियंत्रण और निरीक्षणमें थीं। अतः नगरपालिकाने अपने निर्वाचकोंके आदेशके अनुसार शालाओंको राष्ट्रीय रूप देनेका प्रस्ताव पास किया, और तदनुसार सरकारको सूचना दी। पाठक देखेंगे कि नगरपालिकाने अपनी कार्यवाहीमें कांग्रेसके असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावका सीधा उल्लेख किया है, और स्वराज्य प्राप्तिके ध्येयके हितमें साहसी नीतिको अपनाया है।

शालाओंको सरकारके प्रत्यक्ष निरीक्षणमें चलानेकी नगरपालिकाकी कानूनी बाध्यताका प्राविधिक प्रश्न भी था। इस सम्बन्धमें नगरपालिकाका रुख इस प्रकार व्यक्त किया गया है :

[नगरपालिकाको] असहयोग आन्दोलनसे पूर्ण सहानूभूति है, जिसका उद्देश्य, और बातोंके साथ, पूर्ण स्वराज्यकी प्राप्ति है, और जबतक इस नगरपालिकाका अस्तित्व रहेगा, उसका आवश्यक कर्त्तव्य होगा कि वह राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्त करनेमें नडियादकी जनताकी सहायता करे...। जहाँतक कानूनी कठिनाईका प्रश्न है, सादर निवेदन है कि यदि धारा ५८ नडियाद-निवासियोंकी व्यक्त अभिलाषाके विरुद्ध पड़ती है, तो उसे अपने-आप स्थगित हो जाना चाहिए, क्योंकि यदि यह निकाय नडियादकी जनताकी मनोदशाको ठीक समझ रहा है। तो वह बच्चोंकी शिक्षापर शासनके नियन्त्रणसे कोई वास्ता न रखनेका स्पष्ट निश्चय कर चुका है; और यह तो कहना भी अनावश्यक है कि समितिकी जनताके निश्चयसे पूर्ण सहानुभूति है।
  1. यहाँ नहीं दिया गया है।