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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुल्लड़बाजी

निःसन्देह श्री [वी॰ एस॰ श्रीनिवास] शास्त्री और श्री [आर॰ पी॰] परांजपेके लिए आयोजित बम्बई और पूनाकी सभाओंमें जनताने जो लज्जाजनक व्यवहार किया उससे असहयोग [आन्दोलन] की बहुत बड़ी हानि हुई है। इस घटनाका मैंने यह स्पष्टीकरण भी सुना है कि यह गुण्डागिरी असहयोगी विद्यार्थियोंने नहीं, उन लोगोंने की जो आन्दोलनको बदनाम करना चाहते हैं और जो असहयोगी विद्यार्थियोंके प्रति लोगोंके मनमें पूर्वग्रह पैदा करना चाहते हैं। यह स्पष्टीकरण कुछ हदतक सही भी हो सकता है, क्योंकि निःसन्देह ऐसे व्यक्ति मौजूद हैं जो इस आन्दोलनका गला घोंटनके लिए हिंसापर उतर सकते हैं। लेकिन असहयोगकी यथाशीघ्र सफलताके लिए हमें ऐसी सम्भावनाओंका सामना करनेके लिए भी तैयार रहना है। पराजित सिपाही अपनी सफाईमें कठिनाइयोंका बयान करके नहीं छूट सकता। जब जनरल बुलर[१] लेडी स्मिथका घेरा तोड़नेमें असमर्थ रहे तो उन्हें अधिकारच्युत[२] कर दिया गया। जब लार्ड रॉबर्टस[३] दक्षिण आफ़्रिकी युद्धका कुछ निर्णय नहीं करा पाये तो कमान लार्ड किचनरको सौंप दी गई। यह सरकार तभीतक चल सकती है जबतक वह असहयोगकी पकड़में नहीं आती। यदि असहयोगी विद्यार्थी अपयश नहीं कमाना चाहते थे तो उन्होंने बम्बई या पूनाकी सभाओंमें भाग क्यों लिया? सभाकी सूचनाओंमें यह बात स्पष्ट कर दी गई थी कि वही व्यक्ति सभामें भाग लें जो दूसरे पक्षकी बात सुनने के लिए भी इच्छुक हों। इस प्रकार बम्बई या पूनामें हुई घटनाओंकी कोई सफाई नहीं दी जा सकती। इसके अलावा यह बात भी अकसर भुला दी जाती है कि श्री शास्त्री और परांजपेकी गिनती देशके योग्यतम नेताओं और अनन्य देशभक्तोंमें की जा सकती है। उन्हें भी देशसे उतना ही प्रेम है जितना असहयोगियोंको। वे हमारे बारेमें सोचते हैं कि हम गलतीपर हैं। हम भी उनके बारेमें यही सोच सकते हैं। किन्तु यदि हम अपने विरोधियोंकी बात सुननेसे इनकार करें तो यह हमारी भारी भूल होगी।


इसके साथ हमारा अंग्रेजोंके पूर्वोदाहरण देकर हुल्लडबाजीका औचित्य सिद्ध करना भी आवश्यक नहीं है। पहले हम इसे धार्मिक आन्दोलन मानना बन्द करें और तब अंग्रेजी सभाओंके शोरगुल और अक्खड़बाजीकी नकल करें। हमारा बल इसीमें है कि हम बिना सोचे-विचारे विदेशी या किसी अन्य दृष्टान्तका अनुकरण न करें। सफल होनेके लिए यह आवश्यक है कि यह आन्दोलन तत्त्वत: अहिंसात्मक हो और हर कदमपर, हर समय अपनी विशिष्टता बनाये रखे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-२-१९२१

 
  1. सर रेडवर्ज हेनरी बुलर (१८३९-१९०८); बोअर युद्धके समय ब्रिटिश सेनापति।
  2. बुलरके स्थानपर रॉबर्ट्स सेनापति नियुक्त हुए।
  3. फ्रेडरिक ले रॉबर्ट्स; भारतमें ब्रिटिश सेनाध्यक्ष (१८८५-९३); १८९९-१९०० तक दक्षिण आफ्रिकामें।