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२०१. पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको

लाहौर जाते हुए
२ मार्च, [१९२१][१]

मेरे प्यारे चार्ली,

मैं सोमवारको सारे दिन तुम्हारे बारेमें सोचता रहा, लेकिन पत्र न लिख सका। मैं चाहता था कि तुम्हें पत्र लिखूँ। मैं तुमको बताना चाहता था कि तिब्बिया कालेजके अपने भाषणमें मैंने एक वाक्यमें जो-कुछ कहा उसकी सचाईको मैंने कितनी गहराईसे अनुभव किया है। मैं महसूस करता हूँ कि अछूतोंके प्रति अपराध किया जा रहा है, मैं यह भी महसूस करता हूँ कि लाखों मूक प्राणियोंका शोषण हो रहा है; किन्तु निम्नतर पशु जगतके प्रति मैं अपने कर्त्तव्यको और भी अधिक स्पष्ट रूपसे महसूस करता हूँ। जब बुद्ध उस मेमनेको अपनी पीठपर लादकर ले गये थे और उन्होंने ब्राह्मणोंकी भर्त्सना की थी, तब उन्होंने प्रेमकी पराकाष्ठा कर दी थी। हिन्दू-धर्ममें गायकी पूजा उसी प्रेमका प्रतीक है।

और इस प्रेमकी क्या माँग है? निश्चित रूपसे वह उन पशु-चिकित्सालयोंकी माँग नहीं करता जो मनुष्यके दुर्व्यवहारके शिकार मवेशियोंके लिए बनाये गये हैं——यद्यपि हमें वे चिकित्सालय नष्ट नहीं करने हैं——बल्कि उसकी माँग तो यह है कि पशुओंके प्रति दयाका भाव बढ़ाया जाये। हमारा प्रेम इसमें है कि हम अपने साथी इन मूक प्राणियोंकी गरदनपर सवार न रहें; जो पशु जितना ही असहाय हो, उसके प्रति उतनी ही अधिक दया दिखाई जानी चाहिए।

इस प्रकार सोचनेपर, मैं चरखेमें तथा अपने इस वक्तव्यमें नया अर्थ देखता हूँ कि चरखके विनाशके कारण भारत गुलाम बना और उसकी अवनति हुई। चरखेके बिना गरीबोंके बीच काम करनेसे न तो कोई हित सधेगा और न धर्म ही। हमें गरीबोंकी सहायता करनी चाहिए जिससे वे अपने लिए भोजन-वस्त्र जुटानेमें स्वयं समर्थ हों। जबतक हम चरखेको पुनः चालू नहीं करते, तबतक हम कभी भी सफल नहीं हो सकते। कोई भी अन्य उद्योग भारतमें विशाल पैमानेपर फैली गरीबीकी समस्या हल नहीं कर सकता।

मैंने अपने विचार तुम्हारे सामने यों ही बेतरतीब रख दिये हैं, किन्तु तुम्हें सम्भवतः उनका अर्थ समझनेमें कोई कठिनाई न होगी। तुम्हारे कुछ प्रश्नोंमें जिन कठिनाइयोंका जिक्र है उनका हल देनेकी कोशिश कर रहा हूँ। मुझे लगता है कि तुम चरखेके सन्देशको तथा असहयोगकी भावना किस प्रकार काम करती है इसे भली-भाँति नहीं समझ पाये हो। भारतीय महिलाओंने सम्भवतः सहज वृत्तिसे किसी-न-किसी प्रकार इसे समझ लिया है।

  1. इस पत्रमें तिब्बिया कॉलेजमें दिये गये भाषण (यंग इंडिया, २३-२-१९२१) के उल्लेखसे लगता है कि यह इसी वर्ष लिखा गया था।