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भाषण : ननकाना साहबमें


मैं गुरुदेवकी फटकारको समझता हूँ, किन्तु मैं अपनेको अपराधी अनुभव नहीं करता। मेरा अपना तो यही खयाल है कि मैंने उस समय अपनी अल्पज्ञताके आधारपर सरकारके बारेमें कोई निश्चित राय न बनाकर ठीक ही किया था। अमृतसरकी कांग्रेसके समयतक अपने समूचे हृदयसे आन्दोलनमें भाग लेनेपर मेरे अन्दर दृढ़ विश्वास और एक शक्ति पैदा हो गई है, जो अन्य किसी भी तरह पैदा नहीं हो सकती थी। और इसके पीछे लाभ उठानेकी कोई भावना भी नहीं थी। मैंने जो उचित समझा, उसीपर लाभ-हानिका कोई विचार किये बिना आचरण किया।

लाहौरमें शायद मुझे एक सप्ताह रहना पड़े।[१] वहाँ पहुँचनेपर इसका पता चलेगा।

महादेव साबरमतीमें है। वहीं वह वकीलको 'यंग इंडिया' के उप-सम्पादकके काममें जमा रहे हैं। लालचन्द ने 'यंग इंडिया' छोड़ दिया है।[२] मैं कोई अधिक समर्थ व्यक्ति चाहता था। लालचन्द एक अच्छा और ईमानदार कार्यकर्त्ता है, पर वह अपनी कमियोंको नहीं समझता। उक्त कार्य करनेके बाद महादेव वापस आ जायेगा।

आशा है कि तुम्हारा स्वास्थ्य अब ज्यादा अच्छा होगा।

कृपया बड़ोदादाको मेरा प्रणाम कहना। मुझे यह सोचकर बड़ी शान्ति मिलती है कि इस संघर्षमें वे पूर्ण रूपसे मेरे साथ हैं।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ९६०) की फोटो-नकलसे।

 

२०२. भाषण : ननकाना साहबमें[३]

३ मार्च, १९२१

मैं इस तीर्थयात्रापर आपके प्रति सहानुभूति दिखाने ही आया हूँ। मुझे घुरकाके एक सिख मित्रने तार[४] द्वारा इस दुर्घटनाका[५] समाचार दिया था। मैंने वह तार लाला लाजपतराय और दूसरे मित्रोंको दिखाया। समाचार इतना स्तम्भित कर देनेवाला था कि हमें उसकी पुष्टि करा लेना आवश्यक लगा। हम फौरन लाहौर वापस

 
  1. गांधीजी मार्चमें लाहौर पहुँचे और मार्चमें ही वहाँसे चले गये।
  2. देखिए "पत्र : लालचन्दको", २९-२-१९२१ ।
  3. ननकाना साहबके गुरुद्वारेमें दिये गये हिन्दी भाषणका मूल पाठ उपलब्ध नहीं है। यह अनुवाद यंग इंडियामें प्रकाशित संक्षिप्त अंग्रेजी विवरणसे किया गया है।
  4. २० फरवरीका तार जो गांधीजीको रावलपिंडीमें मिला था।
  5. २० फरवरी, १९२१ को कोई डेढ़ सौ अकाली सिख लाहौरसे ४० मीलकी दूरी पर स्थित ननकाना साहबके गुरुद्वारेमें प्रवेश करते ही मार डाले गये। गुरुद्वारा महंत नारणदासके कब्जेमें था जिनपर अपने अधिकारोंके दुरुपयोगका आरोप लगाया गया था।

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