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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भाई मूलचन्दजीको[१] मैं बधाई देता हूँ। फिर भी मुझे इस बातका खेद है कि उन्होंने सरकार द्वारा दिया गया पदक अभीतक लौटाया नहीं है। यदि उन्हें यह भय है कि पदक लौटा देनेपर सरकार उनके लोकोपकारी कार्यमें बाधा डालेगी और फलस्वरूप लोग मरेंगे तो हमें इसका दुःख भी नहीं मानना चाहिए। इसी प्रकार यद्यपि मैं यह नहीं मानता कि स्वराज्य प्राप्ति सिर्फ मूलचन्दके पदक लौटानेपर या किसी वकीलके वकालत छोड़नेपर निर्भर है; फिर भी यहाँ मंचपर बैठे हुए वकीलोंसे मैं यही अनुरोध करता हूँ कि वे वकालत छोड़ दें। देशके दूसरे भागोंमें कई वकीलोंने उदारतापूर्वक मेरे इस अनुरोधको मान लिया है। श्री दास, पंडित मोतीलाल और लाला लाजपतरायके श्रेष्ठ बलिदानोंको कौन नहीं जानता। देशके दूसरे भागों में विद्याथियोंने भी सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों और कालेजोंको छोड़ दिया है और अब सार्वजनिक कार्योंमें पदवीधारियोंको कोई पूछता ही नहीं है। लेकिन इतना ही काफी नहीं है। स्वराज्य-प्राप्तिके लिए कुछ और शर्ते भी हैं।

तब उन्होंने वे शर्तें बताई और उनका स्पष्टीकरण भी किया। उन्होंने कहा, शर्तें हैं: सभी वर्गोंके भारतीयोंमें एकता और उनके द्वारा अहिंसाका पालन। यदि सभी अपने-अपने धर्मका सच्चा पालन करें तो उससे विभिन्न धर्मके अनुयायियोंमें प्रेम बढ़ेगा। मेरी और अली भाइयोंकी बात ले लीजिए; विभिन्न धर्मोके अनुयायी होनेपर भी हममें परस्पर भाई-भाई-सा स्नेह है। हिन्दू शास्त्रोंकी सर्वोत्तम शिक्षा यही है कि सबपर प्रेमभाव रखें। तीसरी शर्त स्वदेशीका पालन है। चरखा ही हमारे लिए ढाल, बन्दूक और हवाई जहाज भी हैं। जो लोग पहले इस बातकी हँसी उड़ाते थे उन्हें उसकी सचाईका भान हो रहा है। उदाहरणके लिए उन्होंने श्री ओ'डायरका नाम लिया। जबसे चरखेका प्रयोग कम होने लगा, दूसरे राष्ट्रोंके बीच भारतकी प्रतिष्ठा कम होने लगी है। ब्रिटिश राज्यके आरम्भिक कालमें भी जबतक घरोंमें चरखा चलता था किसीको पेटके बल रेंगना नहीं पड़ा, न जमीनपर नाक रगड़नी पड़ी, न ही यूनियन जैकको सलामी देनी पड़ी। जैसे-जैसे चरखेका उपयोग कम होता गया, वैसे-वैसे लंकाशायरका महत्व बढ़ता गया और लोग गुलामीकी जंजीरोंमें जकड़ते चले गये। मैं उपस्थित जनतासे प्रार्थना करता हूँ कि आप चरखेको अपनायें और अपने-अपने घरोंमें सूत कातें तथा ऐशो-आरामको सभी चीजोंका त्याग करें। चौथी शर्त है मन और बुद्धिको पूरी तरह शुद्ध रखना। यदि आप इस्लाम, हिन्दू धर्म तथा सिख धर्मकी रक्षा करना चाहते हैं तो आपको सत्य और धर्मका पालन करना होगा और मद्यपान, फिजूलखर्ची और झूठ आदि भ्रष्ट करनेवाली आदतोंका त्याग करना है। महात्माजीने कहा, स्वराज्य प्राप्तिकी अन्तिम शर्त है राष्ट्रीय कोषोंके लिए खुले दिलसे अर्थ-दान। मैं देख रहा हूँ कि यहाँ बहुतसे धनी लोग और सिख जमींदार उपस्थित हैं। शिकारपुरके व्यापा-

 
  1. सेवा-समिति प्लेग कैम्पके प्रबन्धक। सभाके अन्तमें उन्होंने अपना कैसरे-हिन्द पदक लौटा देनेका वचन दिया था।