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२०५. भाषण : मुलतानमें

५ मार्च, १९२१

महात्माजीने अपना भाषण शुरू करनेसे पहले इस बातके लिए खेद प्रकट किया कि दो बार मुलतान आनेका वादा करके भी वे नहीं आ सके। उन्होंने कहा, पहली बार यह सुनकर कि सरकार मुझे और मौलाना शौकत अलीको नजरबन्द करना चाहती है, हमें अहमदाबाद लौट जाना पड़ा। दूसरी बार ननकाना साहबकी आकस्मिक और दुःखद घटनाके कारण मैंने लायलपुरते मुलतान आनेका अपना कार्यक्रम रद कर दिया। इस बार भी प्लेगके कारण मुझे यहाँ आनेके लिए बहुत मना किया गया फिर भी आप लोगोंके स्नेहवश मैं चला आया हूँ। प्लेगसे पीड़ित व्यक्तियोंकी सेवा समितिने जो सहायता की है वह प्रशंसनीय है। फिर भी यह बीमारी इस नगरमें बहुत ज्यादा गन्दगीके कारण फैली है। इसके लिए मैं यहाँकी जनता और नगरपालिकाको बहुत हदतक उत्तरदायी मानता हूँ। शरीर, मन और आत्माको शुद्ध रखना सबसे जरूरी है। इसके बिना स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव है। इस महामारीकी चर्चाके बाद महात्मा गांधीने राष्ट्रकी पराधीनताकी महामारीकी चर्चा की।

उन्होंने कहा, मुलतानी बहुत आग्रहपूर्वक आमन्त्रित कर रहे थे। मैंने सोचा कि वह स्वराज्यकी दिशामें की गई अपनी प्रगति मुझे दिखानेको उत्सुक हैं। मुझे खेद हैं कि आप लोगोंने जितना कुछ किया है उसपर में आपको बधाई नहीं दे सकता। मुझे लग रहा था कि भाई मौलाना शौकत अली मुलतान न आकर घाटमें रहेंगे; मुलतानियोंने राष्ट्रीय आन्दोलनके लिए जो कुछ किया है उसे वे देख नहीं पायेंगे। पर अब मुलतान आनेके बाद मुझे इस बातका कोई अफसोस नहीं है। मैं देख रहा हूँ कि आप लोगोंने बहुत भारी सभाका आयोजन किया है। इससे भी बड़ी सभाका आयोजन किया जा सकता है। पर मुझे इस बातका दुःख है कि आपने राष्ट्रकी 'महामारी 'को दूर करनेके लिए प्रायः कुछ भी नहीं किया है। किसी भी वकीलने अपनी वकालत बन्द नहीं की और न किसी स्कूलने सरकारसे अपना सम्बन्ध तोड़ा है; किसी राष्ट्रीय शालाकी स्थापना भी नहीं हुई। आप लोगोंने कोई प्रशंसनीय कार्य करके नहीं दिखाया। यह तो हमारी राष्ट्रीय दुर्बलताका सूचक है और इससे मुझे अत्यधिक दुःख हुआ है। वाइसरायका असहयोग आन्दोलनको असफल कहना कुछ हदतक सही है। हालाँकि उन्हें यह भी मालूम होना चाहिए कि हमने सफलता भी बहुत पाई है। भले ही एक भी स्कूल सरकारसे अपना सम्बन्ध न तोड़े, एक भी वकील वकालत न छोड़ें और कोई भी धनी व्यक्ति किसी भी तरहका कोई त्याग न करे तो भी स्वराज्य प्राप्त करना सम्भव है।