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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं जुलूसोंमें नहीं जाऊँगा और बड़ी सभाओंमें भाषण नहीं दूँगा। भारत जलियाँवाला बागमें मारे गये १५०० लोगोंके लिए शोक मना रहा है। शोकके समय संगीत और जुलूसका विचार मुझसे सहन नहीं हो सकता। उन्होंने इस बातपर खेद व्यक्त किया कि सजावट और झंडियों आदिमें विदेशी कपड़े और विदेशी वस्तुओंका इस्तेमाल किया गया है और रोशनी में विदेशी मोमबत्तियों और लैम्पोंका। खिलाफतके मामलेमें जो अन्याय हुआ है उसे दूर कराने या स्वराज्य प्राप्त करनेमें इन तरीकोंसे कोई मदद नहीं मिलेगी।

उन्होंने कहा कि मैं केवल विद्यार्थियोंके बीच भाषण देने आया हूँ और शीघ्र ही जहाँ ठहरा हूँ वहाँ चला जाऊँगा; उस सभामें केवल विद्यार्थी ही शरीक हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि मैं इस सरकारको शैतानकी सरकार मानता हूँ और मेरा विश्वास है कि यदि लोग सच्चाईपर रहें और नेक आचरण करें तो एक सालमें स्वराज्य मिल सकता है। सरकार मुझे पागल [१]कहती है, परन्तु मैं जानता हूँ कि मैं पागल नहीं हूँ। मैं इस धूर्त सरकारसे सच्चाईसे निपटूँगा। उन्होंने वकीलोंसे वकालत छोड़ देनेका, उम्मीदवारोंसे कौंसिलोंका बहिष्कार करनेका और मतदाताओंसे मत न देनेका आग्रह किया। उन्होंने कहा कि चुनावमें चमारको उम्मीदवार बनाना हास्यास्पद है। नौकरशाही उसपर और लोगोंपर ऐसे कामोंके लिए हँसेगी और चूँकि इस ढंगसे स्वराज्य नहीं मिलेगा, वे दोनोंका ही मजाक उड़ायेंगे।[२]

[अंग्रेजीसे]

लीडर, २६-११-१९२०

१५. भाषण : विद्यार्थियोंकी सभा, आगरामें[३]

२३ नवम्बर, १९२०

मुझे यहाँ आकर जितना दुःख हुआ है उतना किसी अन्य स्थानपर नहीं हुआ था। मैं जो काम करने आया हूँ इस गड़बड़ीके बीच वह नहीं किया जा सकता। जहाँकी व्यवस्था इतनी बुरी है वहाँ मैं विद्यार्थियोंसे कालेज छोड़ने के लिए कैसे कह सकता हूँ?

  1. वाइसराय लॉर्ड चैम्सफोर्डने गांधीजीको असहयोग योजनाको “मूर्खतापूर्ण योजनाओं में सबसे अधिक मूर्खतापूर्ण योजना” बताया था।
  2. इस भाषणके बाद गांधीजी और विद्यार्थी सभासे चले गये क्योंकि गांधीजी उनके बीच अलगसे भाषण करना चाहते थे। विद्यार्थियोंकी सभामें दिये गये भाषणकी रिपोर्टके लिए देखिए अगला शीर्षक।
  3. नवजीवन में प्रकाशित महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे उद्धृत।