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भाषण: आगरामें, असहयोगपर

गुजराती बच्चोंके हटा लिये जानेपर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ।[१] मैं समझता हूँ कि इससे तुम्हारा कुछ नुकसान नहीं हुआ। तुम किसी भी बच्चेको रखनेके लिए सिद्धान्तों में ढील नहीं कर सकते। मैंने तुम्हें पत्रमें वह-सब नहीं लिखा जो सीनेट द्वारा अभी पास किये गये प्रस्तावको[२]मंजूर कराने के कारण मुझे सहना पड़ रहा है। लोगोंने मेरा पूरी तरहसे बहिष्कार करने की धमकी दी है। परन्तु मेरी स्थिति बिलकुल स्पष्ट है। मैं दलितवर्ग या किसी भी वर्गकी क्षति स्वीकार करके स्वराज्य नहीं चाहता। मैं स्वराज्य शब्दका जो अभिप्राय मानता हूँ यह वैसा बिलकुल नहीं होगा। मेरा विश्वास है कि जिस क्षण भारत शुद्ध होगा, उसी क्षण वह स्वतन्त्र हो जायेगा; उससे एक भी क्षण पहले नहीं। मुझे केवल इस सबसे बड़े असुर, इस सरकारसे सम्पूर्ण शक्तिके साथ लड़ना होगा और वैसा करते-करते छोटे-मोटे राक्षसोंसे तो में अपने आप ही निपट चुकूंगा। बहिष्कारकी यह धमकी मुझे बहुत ही खुशी दे रही है क्योंकि में महसूस करता हूँ कि वहाँ मैं और भी शुद्ध धरातलपर हूँ। सरकारसे, लड़नेमें सहयोगियोंके उद्देश्य संमिश्र हो सकते हैं, लेकिन छुआछूतके राक्षससे लड़नेमें मेरे साथ बिलकुल चुने हुए लोग हैं।

सप्रेम,

तुम्हारा,

मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ९५६) की फोटो-नकल से।

१४. भाषण: आगरामें, असहयोगपर[३]

२३ नवम्बर, १९२०


श्री गांधीने भाषणका प्रारम्भ हालमें आगरामें हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगोंके उल्लेखसे किया और अधिकारियोंकी मध्यस्थताके बिना ही विवाद सुलझाने के लिए जनताको बधाई दी। उन्होंने कहा कि मुझे अनुशासनहीन सभा देखकर दुःख होता है क्योंकि उससे तो स्वराज्य प्राप्त नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जुलूससे[४]समय नष्ट होता है और बड़ी सभाओंसे वह उद्देश्य पूरा नहीं होता जिसके लिए उनका आयोजन किया जाता है। इन दोनोंमें ही समय नष्ट होता है। शायद मुझे यह व्रत लेना पड़े कि

  1. सम्भवतः इसलिए कि ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर बच्चोंसे शान्तिनिकेतन आश्रम में एक साथ खाना खानेको कहा गया था।
  2. देखिए पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ ८।
  3. मौलाना अबुल कलाम आजादकी अध्यक्षता में हुई विशाल आम सभामें दिया गया भाषण।
  4. गांधीजी तथा अन्य लोग सभा-स्थलपर एक जुलूसमें ले जाये गये थे जिसमें दो घंटे लग गये थे। जुलूसके साथ बैंड था और रास्ता भी खूब सजाया गया थे।