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२१०. भाषण : अम्बालामें

८ मार्च, १९२१

श्री गांधीने अपने दौरेके अन्तिम मुकाम अम्बालामें भाषण देते हुए कहा : मैं सबसे आखिरमें अम्बाला आया हूँ। मुझे आशा है कि मैं जल्दी ही फिर लौटूँगा और दूसरे-दूसरे स्थानोंपर भी जा सकूँगा। मुझे खेद है कि दौरेके आखिरी दिनोंमें मौलाना शौकत अली मेरे साथ नहीं रह पाये। लोगोंको हमें एक साथ देखनेकी आदत हो गई है। पर जब प्रत्येक कार्यकर्ताको अपना पूरा ध्यान और समय दूसरी जगह काममें लगाना आवश्यक हो उस समय वो कार्यकर्त्ता भी, जबतक निहायत जरूरी ही नहीं हो एक साथ नहीं रह पाते। हम इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं और इसीके साथ खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका प्रतिकार भी चाहते हैं। मैं मानता हूँ कि अगर कुछ बुनियादी शर्तोंका पूरा-पूरा पालन हो सके तो यह सम्भव है। मैंने कई स्थानोंपर इसकी विस्तारसे चर्चा की है। आप जानते ही हैं कि हमारे लिए दृढ़तापूर्वक अहिंसाका पूर्ण पालन करना आवश्यक है। इसके लिए हमें अपने हाथोंपर ही नहीं जबान और दिमागपर भी लगाम लगानी होगी। तभी हम संकटको घड़ीमें अपने आपको अनुशासित रख पायेंगे। यदि हम यह मानते हैं कि हमारा यह आन्दोलन धार्मिक है तो हम अपनेको शुद्ध करनेपर कर्त्तव्यबद्ध हैं। इसलिए हमें चाहिए हम शराब आदि मादक पदार्थो का उपयोग न करें, जितेन्द्रिय बनें तथा मन, वचन और कर्मसे सत्यका पालन करके अपने हृदयोंको शुद्ध करें। यह भारतीय राष्ट्र हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी, ईसाई, यहूदी आदि सब जातियोंके लोगोंसे मिलकर बना है; उन सबके हृदय सच्ची एकताकी डोरसे गुम्फित होने चाहिए।

श्री गांधीने कहा, इस समय मैं स्वराज्यके लिए अनिवार्य शर्तोंकी और विस्तारपूर्वक चर्चा नहीं करना चाहता। लेकिन अपने समस्त अनुभवोंका निचोड़ मैं आपके सामने रखना चाहूँगा। मैं अहमदाबाद जा रहा हूँ[१] और वहाँ मुझसे पंजाबके बारेमें पूछा जायेगा। यद्यपि पंजाबके लोग नियम-निष्ठ हैं तो भी असहयोगके मामलेमें पंजाब भारतके दूसरे प्रान्तोंसे पिछड़ गया है। पंजाबमें गुरु नानक और गुरु गोविन्दसिंह जैसे सुधारक हुए हैं। पंजाब दयानन्दकी कर्मभूमि है। १९१९में पंजाबने जो कष्ट सहे हैं वह भारतके दूसरे किसी भागके लोगोंको सहन नहीं करने पड़े। पंजाबमें ही भारतको पेटके वल रेंगनेके लिए विवश किया गया। वहाँके पंजाबी वीरोंको नाकसे लकीरें खींचनी पड़ीं। पंजाबमें ही निर्दोष व्यक्तियोंको आजीवन देश निकाला दिया गया और फाँसीके तख्तेपर लटकाया गया। पंजाबमें ही स्कूलोंके बच्चोंको मीलों पैदल जाने और

  1. गांधीजी ११ मार्च, १९२१ को अहमदाबाद पहुँचे।