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भाषण : हरियानामें

लेनेके लिए संगठित होना चाहिए और अपने धर्मका पालन करना चाहिए। हमें सरकारसे असहयोग करना चाहिए और स्वदेशी वस्तुओंको अपनाना चाहिए। वकीलोंको अपनी वकालत छोड़ देनी चाहिए और हमें स्कूलोंका राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिए। महात्माजीने लोगोंसे धन देनेका अनुरोध किया।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, १०-३-१९२१

 

२०९. भाषण : हरियानामें[१]

८ मार्च, १९२१

महात्माजीने इन संस्थाओंका[२] उद्घाटन करते हुए कहा : मैं इस सफलतापर हरियानाके लोगोंको बधाई देता हूँ लेकिन मेरी प्रार्थना है कि वे स्वराज्यके लिए और ज्यादा काम करें। खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंके निराकरणका केवल यही उपाय है। उन्होंने कहा : मैं अब बॅरिस्टर नहीं रहा, बुनकर और किसान बन गया हूँ। सुत कातने और कपड़ा बुननेमें कोई शर्म की बात नहीं है। उन्होंने वचन और कर्ममें अहिंसाका पालन करनेपर खास जोर दिया और वर्तमान शासन-प्रणालीकी निन्दा की। उन्होंने कहा : स्वराज्य प्राप्त करनेका प्रयत्न करना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है। यह स्वराज्य अहिंसात्मक असहयोगसे ८ महीनमें प्राप्त किया जा सकता है। यदि हम हिंसा करेंगे तो असफल होंगे। सिख चाहते हैं कि ननकाना साहबमें जिन लोगोंने हत्याएँ की हैं, उनको फाँसी दी जाये। वे सरकारकी सहायता लेना चाहते हैं। मैं चाहता हूँ कि यदि सरकार हत्यारोंको छोड़ना चाहे तो वे सरकारको छोड़ देने दें, किन्तु उससे सहयोग न करें। पंचायतोंको मेरा सन्देश यह है कि वे उन लोगोंका सामाजिक बहिष्कार न करें जो उनसे सहमत नहीं हैं। उन्होंने धार्मिक सहिष्णुताके आधारपर हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता करवानेपर जोर दिया। उन्होंने महिलाओंसे विशेष रूपसे अनुरोध किया कि वे खद्दर पहनें, सूत कातें और बुनें एवं राष्ट्रीय आन्दोलनको सफलताके लिए प्रार्थना करें। उन्होंने उनसे कहा कि जब देशमें करोड़ों लोग नंगे और भूखे हैं, उस समय उन्हें जेवर पहननेका कोई अधिकार नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, १०-३-१९२१

 
  1. सभा पं॰ रामभजदत्त चौधरीके बजाय, जो सरकारी प्रतिबन्धके कारण नहीं आ सके थे, सैयद हबीबकी अध्यक्षतामें हुई थी।
  2. कई पंचायतों और राष्ट्रीय स्कूलोंका, जिनके उद्घाटनकी प्रार्थना गांधीजीसे की गई थी।