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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपनी वकालत छोड़ सकते हैं। धर्मकी शुद्धताके इस आग्रहका सार-तत्त्व तो प्रगति ही है। इन संस्थाओंके बारेमें किसीको यह कहनेका मौका न दें कि इन्होंने समयकी गतिको नहीं पहचाना। आपमें लक्ष्मणसिंह[१] और दिलीपसिहकी[२] वीरता तो होनी ही चाहिए; लेकिन इससे भी ज्यादा आवश्यकता आपको उस वीरता की है जो दिखनेमें सामान्य होते हुए भी अथक और अनवरत बलिदानकी वीरता है और जिसकी कि हम असहयोगके कार्यक्रमसे अपेक्षा करते हैं। जिस समय ये दोनों समाज आगे बढ़कर रास्ता दिखायें उस समय पंजाबकी शेष हिन्दू-मुस्लिम जनताको भी पीछे नहीं रहना है। भारतका पूर्ण उद्वार अन्ततः हिन्दुओं और मुसलमानोंके जागरण और प्रयत्नोंपर निर्भर है। अन्तमें मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। आपने अपने स्नेहसे मुझे अभिभूत कर दिया है। पर आपका जलूस निकालनेका चाव, आपकी प्रदर्शन-प्रियता और मेरे पैर छूनेकी इच्छा आदिको देखकर मुझे बहुत संकोच होता है। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप अपने महान और अद्भुत स्नेहका प्रदर्शन न करें और उसे ऐसा कार्यरूप दें जिसकी राष्ट्रको आवश्यकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-३-१९२१

 

२११. टिप्पणियाँ

तारपर प्रतिबन्ध

अहमदाबादमें मेरे सहायकको ड्यूकके बम्बई-आगमनके सम्बन्धमें सन्देश दिया जाना आवश्यक था। मैंने तार भेजा : "और शहरोंके समान बम्बईको भी ड्यूकका बहिष्कार करना चाहिए।" सन्देश गत १८ तारीखको भेजा गया था। मुझे लाहौरके तारवर से गत २४ तारीखको भेजा गया यह तार मिला :

आनन्दानन्द, नवजीवन, अहमदाबादको १८ को भेजा गया आपका तार अहमदाबादमें रोक लिया गया है, क्योंकि वह विभागके आदेशोंके अनुसार आपत्तिजनक है। पैसा लौटानेका प्रार्थनापत्र भेजनेपर आपका पैसा वापस कर दिया जायेगा।

मुख्य रूपसे जिस प्रणालीके हितार्थ तार व्यवस्था चलाई जा रही है, यदि उसी प्रणालीको नष्ट करनेके लिए कोई व्यक्ति तार-व्यवस्थाका उपयोग करे, तो उस तारको रोक लेनेके विरुद्ध कोई भी गम्भीर आपत्ति नहीं उठाई जा सकती। किन्तु यह प्रतिबन्ध तो उस प्रणालीको और भी बुरा सिद्ध कर देता है। यदि कोई एक व्यक्ति भी

  1. और
  2. अकाली सिखोंके नेता जो ननकाना साहिबमें २० फरवरी १९२१ को मारे गये। देखिए "सिख जागृति", १३-३-१९२१ ।