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अन्तिम प्रयास करे। इस खतरेके समय पूर्ण आत्मसंयम ही जल्दी-जल्दी सफलता पानेका तरीका है; और दमनात्मक कार्रवाइयोंको विफल करनेका सबसे सरल उपाय है पदवियों, सरकारी पाठशालाओं, न्यायालयों तथा विदेशी कपड़ेका अधिक व्यापक बहिष्कार और हाथकी कताई तथा हाथकी बुनाईको पुनः उसका पुराना गौरवपूर्ण स्थान दिलानेके लिए अधिक समझदारीसे काम करना।

पत्रकारोंका अज्ञान

तीस वर्षोंके व्यस्त जीवनमें मेरा यही दुर्भाग्य रहा है कि जिन सरकारोंसे मेरा साबका पड़ा उन्होंने अक्सर मेरे बारेमें गलत बातें कहीं और मुझे गलत समझा है। और जिन लोगोंकी मैंने सेवा की, कभी-कभी उनके हाथोंमें भी मुझे यही व्यवहार मिला है। पत्रकार होनेके नाते भी तथा एक लोकसेवी व्यक्ति होने के नाते भी, समाचारपत्रोंसे मेरा घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। लेकिन मुझे उनके अज्ञानका भी शिकार बनना पड़ा है। फिर भी समाचारपत्रों द्वारा प्रदर्शित अज्ञानका ऐसा अनुभव मुझे कभी नहीं हुआ, जैसा इस समय हो रहा है। इंग्लैंड और अमेरिकासे मेरे मित्र समय-समयपर समाचारपत्रोंकी जो कतरनें मेरे पास भेजते रहते हैं, उनसे तो अज्ञानके साथ-साथ अविवेक भी प्रकट होता है। घोर अज्ञान और किसी चीजको लापरवाहीसे पढ़नेका जो उदाहरण सबसे हालमें मेरे सामने आया है, वह है 'लीडर' का। उसमें कताई पर एक लेख है, जिसमें उस लेखका ही गलत अर्थ लगाया है, जिसे उसने उद्धृत किया है। मेरे साथ सफर कर रहे एक युवकने मुझे वह लेख दिखाया। मुझे लेखक द्वारा प्रदर्शित अज्ञान एवं असावधानीपर बड़ा दुःख हुआ। मैंने उक्त युवकसे कहा कि यदि 'लीडर' की भ्राँतियाँ उसकी समझमें आ गई हैं तो वह स्वयं ही उनका जवाब लिखे। उसका जवाब इतना जोरदार है कि स्वयं जवाब देनेका प्रयत्न करनेके बजाय मैं वही जवाब अन्यत्र दे रहा हूँ।[१]

जनगणना करनेवाले

मुझसे पूछा गया है कि लोगोंको जनगणना करनेके सरकारके आमन्त्रणको मान्य करके सरकारके साथ सहयोग करना चाहिए अथवा नहीं। यह बात स्वयं मेरे ही मनमें स्पष्ट नहीं थी, अतः अबतक मैं कोई सार्वजनिक उत्तर देने से बचता रहा हूँ। मुझमें सविनय अवज्ञाकी जो भावना है, उसने मुझे एक ओर तथा वर्तमान कार्यक्रमके प्रति मेरी निष्ठाने बिलकुल दूसरी ओर खींचा है। अन्तमें मेरी निष्ठाने विजय पाई है। मुझे स्पष्ट लगता है कि जनगणनाके मामलेमें हमें सरकारके साथ अवश्य सहयोग करना चाहिए। मुझे विश्वास हो गया है कि इससे हमारे उद्देश्यको बल मिलेगा। यह हममें अनिच्छापूर्वक ही सही, किन्तु ऐसे संविहित नियमोंके पालनका अभ्यास डालेगा, जो हमारी अन्तरात्मा और प्रतिष्ठाको चोट पहुँचानेवाले नहीं हैं, और इससे हमारे संघर्षका उच्च एवं अहिंसक स्वरूप भी सामने आयेगा। हमें सविनय अवज्ञा करनेके लोभका संवरण करना चाहिए, चाहे वह लोभ इतना प्रबल ही क्यों न हो, जितना

  1. नहीं दिया गया।