पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/४४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निषेधमें लगे कार्यकर्त्ताओंके साथ सख्तीसे पेश आनेका है। डाक्टर चोलकर और श्री परांजपे जाने-माने कार्यकर्ता हैं। उन दोनोंपर लगभग मद्य-निषेध सम्बन्धी प्रचारके लिए ही मुकदमा चल रहा है। मजिस्ट्रेटके नोटिससे, जो मैंने अखबारोंमें पढ़ा है, साफ झलकता है कि सरकार शराबकी आमदनीमें कमी हो जानेको उदासीन भावसे नहीं देख सकती। सरकार शक्तिका प्रदर्शन करके भी शराबके लाइसेंस दुराग्रहपूर्वक बेचती रही, जब कि जनताकी भावनाको देखते हुए उसका स्पष्ट कर्त्तव्य था कि इनकी बिक्री बिलकुल न करती, बल्कि उस भावनासे लाभ उठाकर शराबका व्यापार बन्द ही कर देती।

और मद्रास?

असहयोग-विरोधी अभियानमें मद्रास भी पीछे नहीं रहा है। प्रसंगवश यहाँ यह बता दूँ कि और जगह जो थोड़ी-बहुत हुल्लड़बाजी हुई, मद्रासमें वह भी नहीं हुई। श्री याकूब हसन और उनके साथियोंने जमानत देनेसे इनकार करके तथा कारावास भोगनेका निर्णय करके बहुत बड़ी सेवा की है। एक तार अभी आया है, जो कहता है कि मलाबारके चार और नेताओंने जमानत देनेकी अपेक्षा कारावास भोगना बेहतर समझा है। स्पष्ट है कि दमनकी जो लहर देशमें दौड़ रही है, वह आकस्मिक नहीं है, वरन् इसके पीछे एक निश्चित योजना है। मेरा मन तो कुछ ऐसा ही माननेको होता है कि यह आम अफवाह सच है कि केन्द्रीय सरकारने स्थानीय सरकारोंको असहयोगको कुचल देनेके लिए चुस्तीसे कदम उठानेको कहा है।

असहयोगियोंका कर्त्तव्य

इस दमनके विरुद्ध हमारा कर्त्तव्य स्पष्ट है। हमने इस्लामके लिए, पंजाबके लिए और स्वराज्यके लिए कष्ट भोगनेका बीड़ा उठाया है। अतः हमें इन मुकदमों तथा उनके फलस्वरूप होनेवाली जेलकी सजाओंका स्वागत करना चाहिए। प्रत्येक अच्छे आन्दोलनको पाँच अवस्थाओंसे गुजरना पड़ता है——उपेक्षा, उपहास, दुर्वचन और निन्दा, दमन तथा सम्मान। उपेक्षाकी अवस्था हम कुछ महीनोंतक झेल चुके। फिर वाइसराय महोदयने आन्दोलनका उपहास भी किया। इन दिनों इस आन्दोलनको गलत रूपमें पेश करनेके साथ-साथ इसकी निन्दा और भर्त्सना करना तो रोजकी बात बन गई है। प्रान्तीय गवर्नरोंने तथा असहयोग-विरोधी समाचारपत्रोंने अपने सामर्थ्य-भर आन्दोलनकी भर्त्सना की है। अब आया है दमन, जो अभीतक बहुत कुछ नरम रूपमें ही है। जो आन्दोलन नरम अथवा कठोर, सब प्रकारके दमनके बाद भी जीवित रहता है, उसके प्रति सदा आदर ही उत्पन्न होता है, जो सफलताका ही दूसरा नाम है। हमें इस दमनको——यदि हम सच्चे हैं तो——आनेवाली विजयका निश्चित चिह्न समझना चाहिए। यदि हम सच्चे हैं तो न तो हम दबेंगे और न क्रूद्ध होकर प्रत्याघात और हिंसाका आश्रय लेंगे। हिंसा आत्मघात है। हमें यह समझ रखना चाहिए कि शक्तिका सहज ही अन्त नहीं होता है; और सरकारके लिए यह स्वाभाविक ही है कि वह, चाहे दमनके द्वारा ही क्यों न हो, अपना अस्तित्व कायम रखनेके लिए एक