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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तथापि सिख भाइयोंको सरकारपर विश्वास नहीं है। वे मानते हैं कि महन्तकी तैयारियोंसे सरकारी अधिकारी अनभिज्ञ नहीं हो सकते थे। लेकिन इस स्थानपर मैं सरकारके दोषपर विचार नहीं करना चाहता।

हमें सिर्फ एक ही बातपर विचार करना है कि इससे हमें क्या सीख मिलती है। हम मरकर अपनी ताकतको इतना बढ़ा सकते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं बाँधी जा सकती। यदि सिखोंने महन्त और उसके साथियोंको मार दिया होता अथवा उन्हें घायल कर दिया होता, या दोनों पक्षोंके व्यक्ति समान संख्यामें मारे गये होते तो अकाली दलमें आज जो शक्ति आ गई है वह कभी न आती। यद्यपि मरे तो सिख हैं तथापि डर रहे हैं महन्त और अन्य लोग, जिनका गुरुद्वारोंपर कब्जा है और जो अपने स्वार्थके लिए इस कब्जेको बनाये रखना चाहते हैं। भय यह है और ऐसा अनेक समझदार सिख समझते हैं कि अपनी विजयके इस अवसरपर यदि सिख भाई आवेशमें अपना विवेक खो बैठेंगे तो वे अपनी अर्जित कमाईको खो बैठेंगे और कौम निस्तेज हो जायेगी।

इसके अतिरिक्त और भी गम्भीर प्रश्न उठते हैं, मैं अभी इस समय उनकी चर्चा नहीं करना चाहता, क्योंकि फिलहाल गुजराती पाठकोंको उसकी आवश्यकता नहीं। प्रसंग आनेपर मैं पाठकोंसे उनका जिक्र करूँगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १३-३-१९२१

 

२१६. पत्र : जी॰ ए॰ नटेसनको[१]

बम्बई
१४ मार्च, [१९२१][२]

प्रिय श्री नटेसन,

कल आपका तार मिला। श्री गांधी महसूस करते हैं कि उन्हें आपके यहाँ ही पूरी मानसिक शान्ति मिलेगी,[३] लेकिन वे आपको किसी अटपटी स्थितिमें नहीं डालना चाहते।[४]}} वे आपकी स्थिति भलीभाँति समझते हैं और इसलिए उनकी इच्छा है कि इस बार वे उन्हीं लोगोंके साथ ठहरें जो फिलहाल उनके साथ हैं। उनको पूरा विश्वास

 
  1. स्पष्ट ही पत्र गांधीजीकी भोरसे महादेवभाई देसाईंने लिखा था।
  2. पत्रके पाठसे जान पड़ता है कि यह १९२१ में लिखा गया था; देखिए "पत्र : जी॰ ए॰ नटेसनको", ४-४-१९२१ ।
  3. अप्रैल्के आरम्भमें अपनी प्रस्तावित मद्रास-यात्रामें।
  4. श्री नटेसन असहयोगके पक्षमें नहीं थे।