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टिप्पणियाँ

है कि आप इसका बुरा नहीं मानेंगे। अब आपको उनके ठहरनेकी जगहके बारेमें बिल- कुल चिन्ता करने की जरूरत नहीं है।

हृदयसे आपका,
म० ह० देसाई

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० २२४३) की फोटो-नकलसे।


२१७. तार : विजयराघवाचार्यको


[ १४ मार्च, १९२१ के बाद ][१]

अभी पत्र मिला। ३० तारीखको मेलसे बेजवाड़ा[२] पहुँचनेकी आशा ।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७५०३) की फोटो-नकल से।

२१८.टिप्पणियाँ

मानवता बनाम देशभक्ति

एक भाईने मेरा ध्यान सिखोंके नाम लिखे मेरे पत्रमें[३] की गई अपील की ओर आकर्षित किया है। उनके विचारसे, उनकी मानवीय भावनाको छूनेके बजाय उनकी देशभक्तिकी भावनाको जगाने के लिए की गई यह अपील अनुचित है। जिस अंशपर उन्होंने आपत्ति की है, वह इस तरह है :

हत्यारोंके विरुद्ध न्याय मांगनेका शुद्धतम मार्ग यही है कि न्याय न माँगा जाये। हत्यारे--चाहे सिख हों, पठान हों अथवा हिन्दू हों--हमारे देशवासी हैं। उनको दण्ड देनेसे अब मृत व्यक्ति फिरसे जीवित नहीं हो सकते। जिनके हृदय इस वेदनासे दग्ध हैं, उनसे में कहूँगा कि वे हत्यारोंको क्षमा कर दें--इसलिए नहीं कि वे कमजोर हैं। कमजोर तो वे हैं ही नहीं, उनमें इन हत्यारोंको दण्डित कराने की पूरी क्षमता है। अतः वे उन्हें क्षमा कर दें इसलिए कि उनकी शक्ति अपरिमित है। शक्तिवान ही क्षमा कर सकता है।

मैंने इस अंशको बार-बार पढ़ा है। मुझे लगता है कि में आज भी उसका कोई शब्द नहीं बदलना चाहूँगा । उस पत्रमें मैंने सिखोंसे जो अपील की है वह उनके

 
  1. १. यह तार श्री विजयराघवाचार्यके १४ मार्च, १९२१ के पत्रके उत्तरमें था ।
  2. २. यहाँ ३१ मार्च, १९२१ को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक होनेवाली थी ।
  3. ३. देखिए "सन्देश: ननकाना साहबकी दुःखद घटनापर सिखोंको", ४-३-१९२१।
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