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हैं, वे पूर्णतः बर्खास्त किये गये नहीं माने जा सकते। जो पुत्र अपराध करके पश्चा- ताप न करे उस पुत्रको भोजन देने के लिए उसका पिता बाध्य नहीं है; यही नहीं, यदि वह उसका पोषण करता जाता है तो उसके अपराधमें भी भागीदार होता है।

कांग्रेस द्वारा नियुक्त जाँच समितिके सदस्योंकों[१] छूट थी कि वे चाहें तो महा- भियोग लगाने और साधारण मुकदमे चलाने अथवा बर्खास्तगीतक की सलाह दे सकते हैं। उन्होंने उद्देश्य सिद्धिके खयालसे नहीं, बल्कि मानवीयताके कारण दूसरा मार्ग अप- नानेकी ही सलाह दी। कदाचित् पाठक नहीं जानते कि इस उलझन-भरे मामलेपर सदस्योंने गम्भीरतापूर्वक कई घंटे विचार किया था। रिपोर्टका अन्तिम मसविदा काशी- में, गंगाके किनारे तैयार किया गया।[२] सिफारिशपर सदस्योंमें खूब गरमागरम बहस हुई; और फिर उन्होंने एकमत होकर यह निर्णय लिया कि मुकदमा न चलाने से भारतको लाभ ही होगा। अभी हालमें पटनामें एक महत्वपूर्ण भाषण देते हुए श्री दासने समितिके सदस्योंके आपसी समझौतेका उल्लेख किया था। सदस्योंने निश्चय किया कि जब हम जो कमसे-कम माँग हो सकती है, उसीकी सिफारिश कर रहे हैं, तो हमें गम्भीरतापूर्वक यह संकल्प भी करना चाहिए कि अपनी जानकी बाजी लगा कर भी हम इस माँगको पूरा करायें। अतः उक्त समितिके सदस्य यदि आज असह- योगी हैं, तो यह तो उनका साधारण कर्त्तव्यमात्र है। किन्तु उन्होंने दण्ड देनेके अधि कारका प्रयोग न करनेका मार्ग चुना। यह सच है कि समूचे भारतवर्षंने अभीतक सोच-विचारकर मानवता, अर्थात् क्षमाका सिद्धान्त स्वीकार नहीं किया है। हत्यारोंको फाँसीपर लटकाने आदिकी बातें बहुधा सुनाई देती हैं। किन्तु ब्रिटिश गवर्नरों और जनरलोंके खिलाफ कुछ करने योग्य शक्ति अभीतक भारत में नहीं है। वह अभी उनसे डरता है। अतः, सर माइकेल ओ'डायर तथा जनरल डायरको क्षमा करनेकी बात अर्थहीन है। किन्तु भारत प्रतिदिन शक्ति-लाभ कर रहा है और क्षमा करनेके योग्य बन रहा है। जब कोई भारतीय पंजाबके अपराधियोंको दण्ड देने की बात करता है, तो वह पुरुषार्थहीन क्रोधके आवेशमें ही ऐसा करता है। किन्तु मेरा विश्वास है कि यदि भारत आज स्वतन्त्र होता, अर्थात् अपराधियोंको दण्ड देनेके लायक शक्तिसे सम्पन्न होता, तो वह दण्ड न देता । वह तो केवल जलियाँवाला-जैसी घटनाओंकी सम्भावना- ओंसे मुक्त होना चाहता है। सम्पूर्ण असहयोग आन्दोलनकी कल्पना न्यायकी भावनासे ही की गई है, उसके पीछे प्रतिशोधकी कोई भावना नहीं रही है।

इस प्रणालीके विरुद्ध

इसके अतिरिक्त, संघर्ष व्यक्तियोंके विरुद्ध नहीं, वरन् इस प्रणालीके विरुद्ध है। निश्चय ही सभी गवर्नर बुरे नहीं हैं। हकीम अजमलखाँने, जो महान्तम भार-

तीयों तथा उच्चतम मुसलमानों में से हैं, तिब्बिया कालेजके उद्घाटनके अवसरपर लॉर्ड

 
  1. १. गांधीजी, चित्तरंजन दास, अब्बास तैयबजी, मु० रा० जयकर जिनकी नियुक्ति कांग्रेसकी पंजाब उप-समितिने अप्रैल १९१९ में हुए पंजाबके उपद्रवोंकी जांचके लिए की थी ।
  2. २. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ६१-६२ ।