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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हाडिंग और लेडी हार्डिंगके चित्रोंका अनावरण करके यह स्पष्ट कर दिया है। असह- योगियोंने बराबर इस सम्बन्धमें अंग्रेजोंका मत माँगा है और सभी राष्ट्रोंके व्यक्तियोंको आत्मशुद्धिके इस आन्दोलनमें सम्मिलित होनेको आमन्त्रित किया है।[१] भारतका संघर्ष अंग्रेजोंकी उच्चताके थोथे दावेके खिलाफ है। इस शोषक प्रणालीका संचालन चाहे लॉर्ड चैम्सफोर्ड करें, चाहे लॉर्ड सिन्हा, भारत शोषणको बरदाश्त करनेके लिए तैयार नहीं है। असहयोगकी भाषा एकाघ बार कटु भले ही हो, उसके साधनोंका कोई मुकाबला नहीं है।

पण्डित मालवीयजी

साधनोंकी बातसे मुझे बनारस में हुई हालकी घटनाओंका स्मरण हो आता है। पण्डित मदनमोहन मालवीयके साथ जो दुर्व्यवहार किया गया, वह जनताकी मनःस्थितिको सूचित करता है। भारतमें यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसका कदापि अपमान नहीं किया जाना चाहिए, तो वे पण्डितजी ही है। पंजाबके प्रति की गई उनकी सेवाएँ आज भी हमारी स्मृतिमें ताजी हैं।[२] एकमात्र उन्हींके परिश्रमसे बनारसके महान् विश्वविद्यालयका निर्माण हुआ। वे देशभक्ति में किसीसे कम नहीं हैं। वे आवश्यकतासे अधिक सज्जन हैं। यह भारतका दुर्भाग्य है, उनका दोष नहीं, कि वे कुछ समयके लिए अपनी प्यारी चीज छोड़नेकी जोखिम उठानेपर खुदको लाचार पाते हैं। उनका इस प्रकार अपमान किया जाना भारी दुःखकी बात है। यदि संस्कृतके विद्यार्थियों अथवा तथाकथित संन्यासियोंने विद्यार्थियोंका मार्ग रोक लिया था, तो निश्चय ही पण्डितजीको अधिकार था, बल्कि उनका कर्त्तव्य था कि वे बीचमें पड़कर सहयोगी विद्यार्थियों को रास्ता दिलवाते। मेरे विचारसे पुलिसने सरगना लोगोंको या जिन्हें उसने अगुआ समझा, उनपर मुकदमा चलाकर बिलकुल ठीक किया। गिरफ्तार किये गये लोगोंके साथ दुर्व्यवहार किया गया होगा - यह में मानता हूँ। किन्तु पुलिससे सौम्य व्यवहारकी आशा हमें स्वराज्य प्राप्त करने के बाद भी नहीं करनी चाहिए। अतः मैं उन लोगोंके प्रति जरा भी सहानुभूति नहीं दिखा सकता, जिन्होंने इतने स्पष्ट रूपसे उस उद्देश्यके नाममें बट्टा लगाया है, अज्ञानवश जिसके हामी होने का दावा वे करते हैं।

सच्चे और झूठे

किन्तु आन्दोलन में होनेवाली ज्यादतियोंकी आलोचना करना एक बात है, और स्वयं आन्दोलनकी ही निन्दा करना बिलकुल दूसरी बात है। सच्चे असहयोगियों और झूठे असहयोगियोंमें भेद करना जरूरी है। नासमझ विद्यार्थियों और अज्ञानी संन्यासियों- का व्यवहार निःसन्देह लज्जाजनक तथा निन्दनीय था । किन्तु जनताका विशाल समु- दाय असहयोगकी सीमाओंको जानता है, और उनका अतिक्रमण नहीं करता। में साहस-

पूर्वक यह दावा करता हूँ कि भारत आज जितना शान्त है, उतना पहले कभी नहीं

 
  1. १. इसके बादके अंशमें जो वाक्य आये हैं, वे मूल स्रोतमें ही कहीं-कहीं कटे-फटे हैं। उन्हें अनुमानसे पूरा करके अनुवाद किया गया है ।
  2. २. जलियाँवाला बागकी घटनाके बाद १९१९ में मालवीयजीने पंजाबका दौरा किया था ।