देशके अन्य भागोंकी बहनोंको पराजित करती ही हैं, और हमेशा करती रहेंगी, ऐसी
मेरी मान्यता है। एक बैरिस्टरकी लड़कियोंने मेरे साथ चरखेकी होड़ लगाई। मेरा
हाथ तो क्योंकर चले ? तार तानूं कि वह टूट जाये, और ये बालाएँ तो तार तानती
ही चली जाती थीं। मैं लज्जित हो गया। हार तो मैंने शुरूमें ही मान ली थी।
उनके पिताने मुझे आश्वासन दिया और कहा कि मेरा चरखा ही खराब होगा। लेकिन
अपने अज्ञानकी मुझे पूरी-पूरी जानकारी थी इसलिए यह आश्वासन बेकार था। इन
बालाओंके चरखेसे जो झंकार निकलती थी वह मुझे तो अच्छे वाद्ययन्त्रके संगीतसे
भी मधुर लगती थी। यह चरखा-युद्ध रातके ग्यारह बजेतक चला लेकिन अगर मुझे
कोई और काम न होता तो मैं अवश्य चरखेकी गतिको देखता रहता क्योंकि मेरा
विश्वास दिन-प्रतिदिन दृढ़ होता जाता है कि हिन्दुस्तानका स्वराज्य चरखेमें ही
समाहित है।
स्वराज्यका झंडा
एक समझदार मित्रने[१] सलाह दी है कि स्वराज्यके झंडेपर चरखका ही चित्र होना चाहिए। मुझे यह विचार बहुत ही सुन्दर लगा है। हम विचित्र झंडेका प्रयोग करते हैं। आन्ध्र प्रान्तके एक सज्जनने[२] अनेक प्रकारके झंडोंका सुझाव दिया है लेकिन मुझे तो स्वराज्यके झंडे में चरखेके चित्र होनेके विचारके समान अन्य कोई विचार प्रिय नहीं लगता। कांग्रेसके आगामी अधिवेशनके कार्यवाहकोंको मैं यह विचार भेंट करता हूँ।[३]
व्यापक प्रवृत्ति
पंजाब एक ऐसा अंचल है जहाँका कदाचित् ही कोई घर चरखेसे विहीन हो । जालन्धर, होशियारपुर, और हरियाना तो चरखेके केन्द्र हैं। वहाँके चरखे और दूसरी देशी कारीगरी उत्तम होती है। होशियारपुरके एक सज्जनने मुझे दो चरखे दिये हैं। उन्हें जो व्यक्ति देखना चाहे वह आश्रम में आकर देख सकता है। वहाँके चरखे एक तरहकी शीशमकी लकड़ीके बने हुए होते हैं। उसमें हत्थे आदि खरादपर उतारे हुए होते हैं और उनपर कारीगरी की गई होती है। उसमें रंग भी भरे जाते हैं। कितने ही चरखों में तो कलाका खासा प्रदर्शन किया जाता है। मूल्यवान चरखोंपर हाथीदांत- का काम किया हुआ होता है। कुछ चरखोंके चक्करमें शीशा भी लगा हुआ होता है। और किसी-किसो में घूंघरु बँधे होते हैं। होशियारपुरमें मुझे बताया गया कि गत महीनोंमें चरखेका मूल्य दुगुना हो गया है। आम तौरपर अच्छे रंगीन चरखेकी कीमत पन्द्रह रुपये होती है। चरखेकी माँग इतनी बढ़ गई है कि कारीगर उसे पूरा नहीं कर सकते ।