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मेरी पंजाबकी अन्तिम यात्रा

विचित्र मानपत्र

मुझे अनेक प्रकारके मानपत्र दिये जाते हैं लेकिन जैसा मानपत्र मुझे जालन्धरमें मिला वैसा आजतक नहीं मिला । सामान्य रूपसे हमारी नगरपालिकाएँ सार्वजनिक कार्यकर्ताओंको मानपत्र नहीं देतीं। उसकी पहल बेरली[१] नगरपालिकाने, जब मैं और शौकत अली वहाँ गये थे तब की थी, फिर गोरखपुरने[२] और और अब जालन्धर नगरपालिकाने । जालन्धर[३] नगरपालिकाने औरोंकी अपेक्षा अधिक साहसपूर्ण कदम उठाया लेकिन उसका यह साहस समयानुकूल था। मानपत्र अंग्रेजीमें नहीं था, वह मधुर हिन्दुस्तानीमें और उर्दू लिपिमें प्रकाशित किया गया था। इसके अलावा वह रेशम, महीन कपड़े अथवा कागजपर न होकर, खादीपर लिखा गया था। यह खादी मक्का शरीफतक जाकर पवित्र हो आई थी। जालन्धरके एक वकील श्री नासिरुद्दीन शाहकी माताने अपने कफनके लिए अनेक वर्षोंसे जो खादी सँभाल कर रखी थी, स्वयं उन्होंने उस खादीमें से यह टुकड़ा काटकर दिया और मानपत्र उसपर छापा गया । सुनते हैं आज तो मुसलमान भाई कफनके लिए जानबूझकर खादीका इस्तेमाल करते हैं ।

अयोध्या में, जहाँ रामचन्द्रजीका जन्म हुआ, कहा जाता है उसी स्थानपर छोटा-सा मन्दिर है। जब मैं अयोध्या पहुँचा तो वहाँ मुझे ले जाया गया। श्रद्धालु असहयोगि- योंने मुझे सुझाव दिया कि मैं पुजारीसे विनती करूँ कि वह सीतारामकी मूर्तियोंके लिए पवित्र खादीका उपयोग करे। मैंने विनती तो की लेकिन उसपर अमल शायद ही हुआ हो। जब मैं दर्शन करने गया तब मैंने मूर्तियोंको भौंडी मलमल और जरीके वस्त्रों में पाया । यदि मुझमें तुलसीदासजी जितनी गाढ़ भक्तिकी सामर्थ्य होती तो मैं भी उस समय तुलसीदासजीकी तरह हठ पकड़ लेता | कृष्णमन्दिरमें तुलसीदासजीने प्रतिज्ञा की थी कि जबतक धनुषवाण लेकर कृष्ण रामरूपमें प्रकट नहीं होते तबतक तुलसी-मस्तक नहीं झुकेगा। श्रद्धालु लेखकोंका कहना है कि जब गोस्वामीने ऐसी प्रतिज्ञा की तब चारों ओर उनकी आँखोंके सामने रामचन्द्रजीकी मूर्ति खड़ी हो गई और तुलसीदासजीका मस्तक सहज ही नत हो गया। अनेक बार मेरा ऐसा हठ कर- नेका मन हो आता है कि हमारे ठाकुरजीको जब पुजारी खादी पहनाकर स्वदेशी बना- येंगे तभी हम अपना माथा झुकायेंगे। लेकिन मुझे पहले इतना तप करना होगा, तुलसी- दासजीकी अपूर्व भक्तिको प्राप्त करना होगा। इस बीच जैसे मुसलमान भाई पवित्र कार्योंके लिए खादीका उपयोग करने लगे हैं वैसे ही मैं चाहता हूँ कि हिन्दुओंके मन्दि- रोंमें और अन्य पवित्र कार्यों में खादीका इस्तेमाल होने लगे। सृष्टिका नियम है कि एक महत्वपूर्ण कार्यके सुसम्पन्न होनेसे अन्य सम्बद्ध कार्य स्वयमेव सम्पन्न होते चले जाते हैं। हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा आयात कपड़ेका होता है, यद्यपि एक समय ऐसी बात न थी। फलतः जब हम विदेशी कपड़ेका सर्वथा बहिष्कार कर देंगे तब हमें स्वराज्य

  1. १. १७ अक्तूबर, १९२० ।
  2. २. ८ फरवरी, १९२१ ।
  3. ३. ७ मार्च, १९२१ ।