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टिप्पणियाँ

इस उत्तेजनाको भी सहन कर जायें तो हमारी सफलता निश्चित हो जाये । हमें इनका प्रत्युत्तर नहीं देना चाहिए। हमारी निष्क्रियता सरकारके पागलपनको समाप्त कर देगी, क्योंकि हिंसा तो प्रत्युत्तरके सहारे ही पनपती है; यानी हिंसककी इच्छाको नत होकर स्वीकार कर लेने से या फिर प्रतिहिंसा करने से । प्रत्येक कार्यकर्ताको मैं आग्रह- पूर्वक यही सलाह दूंगा कि इस बुरी सरकारसे वे इस हदतक असहयोग करे कि उससे हमारा कोई वास्ता ही न रह जाये; हम उसके बारेमें बात ही न करें। एक बार बुराईको पहचान लेनेके बाद उसे सहयोग देकर उसके प्रति सम्मान भाव प्रकट करना बिलकुल बन्द कर दें।

मूल परिपत्र

भारत सरकारने अपने मूल परिपत्रमें जो स्थिति अपनाई थी, वह सुसंगत थी।[१] उसने उसमें स्वतन्त्र भाषण तथा स्वतन्त्र विचारका अधिकार स्वीकार कर लिया था। उसने प्रत्यक्ष हिंसाको ही बलपूर्वक दबानेकी धमकी दी थी। किन्तु उसके प्रकाशनके समय मैंने उसके प्रति अपना अविश्वास प्रकट किया था। उसके रचयिताओंने आशा की थी कि वे उपेक्षा अथवा सहिष्णुता दिखाकर आन्दोलनको नष्ट कर देंगे। किन्तु ज्यों ही इस आन्दोलनसे सरकारी संस्थाओंकी प्रतिष्ठाको धक्का पहुँचना शुरू हुआ, विदेशी कपड़ेका वास्तविक बहिष्कार होने लगा तथा शराबकी आमदनी घटने लगी त्यों ही सरकार भयभीत हो गई, और स्वतन्त्र भाषण और प्रचारको रोकने लगी। और यह दमन तो महज अभ्यासके तौरपर है। यथार्थ दमन तो आगे किया जाना है। हमें उसके लिए तैयार हो जाना चाहिए। मौन रूपसे आत्मशुद्धिका हमारा संकल्प अटल और अविचल होना चाहिए। हमें ओ'डायरके-जैसे आतंककी अग्निमें से भी गुजर सकना चाहिए। और अपने देशके प्रति अपनी निष्ठाको सिद्ध करना चाहिए — उसी प्रकार जैसे सीताने अग्नि-परीक्षा द्वारा अपने स्वामीके प्रति अपनी निष्ठाको सिद्ध कर दिया था।

बिहार सरकार

यदि विहार प्रान्तसे असहयोग आन्दोलनमें अन्य प्रान्तोंको पीछे छोड़ जानेकी आशा की जा रही है, तो वहाँकी सरकार भी दमनकी रीतियोंका आविष्कार करनेमें प्रथम स्थान पानेका खासा प्रयास कर रही है। अब उसने नगरपालिकाओंके सदस्यों और कर्मचारियोंपर भी प्रतिबन्ध लगा दिया है कि उन्हें असहयोग सभाओंमें भाग नहीं लेना चाहिए। मैंने परिपत्र देखा नहीं है, किन्तु मैंने सुना है कि उसका अर्थ यही है। यदि ऐसा है, तो में नगरपालिकाओंके सदस्यों तथा कर्मचारियोंको सलाह देता हूँ, कि वे परिपत्रकी उपेक्षा करके सरकारको चुनौती दें कि वह नगर- पालिकाओंको भंग कर दे। मतदाताओंमें यदि साहस है, तो वे बार-बार उन्हीं सदस्यों को निर्वाचित करते रहें, और सरकारको मजबूर करें कि वह या तो नगरपालिकाओंके शासनको निष्क्रिय कर दे, या फिर इस आपत्तिजनक परिपत्रको वापस ले ले।


  1. १ और २. “अहिंसाकी एक विजय ", २१-११-१९२० ।