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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


वकालत करनेवाले वकील

वकीलोंके बारेमें मैंने जो विचार प्रकट किये हैं उसकी विवेचना करते हुए 'पत्रिका'[१] ने एक अग्रलेख लिखा है, और अपनी जबर्दस्त असहमति व्यक्त की है, 'पत्रिका' का विचार है कि वकील लोग कांग्रेसके मंचपर से जनताका नेतृत्व करते रह सकते हैं। मैं सविनय निवेदन करता हूँ कि असहयोगके प्रस्ताव से किसी भी प्रकार विचलित होना भारी भूल होगी। मैं जानता हूँ, 'पत्रिका' समझती है कि कांग्रेसने सभी वकीलोंको वकालत छोड़नेका आदेश नहीं दिया है। मैं इस व्याख्यासे अपनी असहमति व्यक्त करनेका साहस करता हूँ। वह प्रस्ताव सभी वकीलोंको अपनी वकालत बन्द करनेके लिए, अधिकसे-अधिक प्रयत्न करनेका आदेश देता है। और मेरी रायमें, जो वकील अभीतक वकालत नहीं छोड़ पाये, वे कांग्रेसकी किसी भी संस्थामें पदग्रहण करने, अथवा कांग्रेसके मंचपरसे जनताका नेतृत्व करनेकी आशा नहीं कर सकते। क्या अपने खिताबोंको छोड़े बिना भी खिताबधारी व्यक्ति कांग्रेसके पदाधिकारी निर्वाचित किये जा सकते हैं? यदि हम समस्याओंका साहसके साथ सामना नहीं करेंगे तो भय है कि हम आन्दोलनको दूषित कर देंगे। हमारी कथनी और करनीमें थोड़ा भी अन्तर नहीं रहना चाहिए। मेरा मत है कि किसी प्रान्तीय समितिका वकील अध्यक्ष — यदि वह अपनी वकालत बन्द नहीं करता तो — अपने प्रान्तका नेतृत्व करके उसे विजय प्राप्त नहीं करा सकता । उसका कोई प्रभाव ही नहीं पड़ेगा। अपने दौरोंमें मैंने यह बात बार-बार देखी है कि जिन वकीलोंने अबतक जनताका नेतृत्व किया है, उन्होंने या तो अपनी वकालत त्याग दी है या अपना सार्वजनिक जीवन ।

वकालत करनेवाले वकीलोंकी व्यापारियोंसे तुलना करनेमें 'पत्रिका' भूल करती है। अभीतक बहुत कम व्यापारियोंने जनताका नेतृत्व किया है, किन्तु जहाँ वे आगे आये हैं, उन्होंने विदेशी कपड़ेका व्यापार करना निश्चय ही छोड़ दिया है। मुझे यह कहते हुए हर्ष होता है कि जनता कथनी और करनीके अन्तरको कभी सहन नहीं करेगी। किन्तु सार्वजनिक पदके लिए प्रयत्न न करना, अथवा उसे छोड़ देना एक बात है, और एक कमजोर किन्तु विनम्र अनुयायीके समान आन्दोलनकी सहायता करना दूसरी बात। हजारों व्यक्ति कांग्रेसकी पूरी सलाह मानने में असमर्थ हैं, और फिर भी मौन अनुयायियोंके रूप में अभियानकी उत्साह के साथ सहायता कर रहे हैं। वकालत करनेवाले वकीलोंको यही रुख अपनाना चाहिए। यह सम्मानजनक, प्रतिष्ठास्पद और सुसंगत होगा। स्वराज्यकी दिशा में अपनी प्रगतिमें, हमारा किसी वर्ग अथवा व्यक्तिके नेतृत्वको सफलताके लिए परमावश्यक समझना जरूरी नहीं है।

जब वह वकालत छोड़नेके विकल्पके रूपमें निन्दा अथवा अपमानका प्रस्ताव करती है, तब 'पत्रिका' 'यंग इंडिया 'के तत्सम्बन्धी अनुच्छेदके क्षेत्रसे आगे जाती है। यदि कोई असहयोगी किसी ऐसे वकील अथवा अन्य व्यक्तिका तिरस्कार अथवा अपमान करता है जो कांग्रेसके आह्वानको स्वीकार करने में या तो बिलकुल असमर्थ है अथवा


  1. १. अमृतबाजार पत्रिका, कलकत्ता ।