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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कि अब हम देशके विभिन्न भागोंका दौरा अलग-अलग करेंगे। हम दोनोंने एक वर्ष- तक साथ-साथ रहकर जो पदार्थपाठ भारतके सामने रखा यदि वह हिन्दू-मुस्लिम एक- ताकी नितान्त आवश्यकताके बारेमें आपको आश्वस्त करनेके लिए पर्याप्त नहीं है और यदि हमारे देशभाइयोंको[१] पिछले वर्षभर इसपर अमलसे जो पारस्परिक सुख दृष्टिगत हुआ है वह भी एकताका महत्व सिद्ध करनेके लिए पर्याप्त नहीं है, तो जहाँतक मेरा सम्बन्ध है मैं हिन्दू मुस्लिम एकताकी आवश्यकताके बारेमें आपको विश्वास दिलानेका विचार ही त्यागे देता हूँ। मौलाना शौकत अली एक कट्टर मुसलमान हैं। मैं एक कट्टर सनातनी हिन्दू होनेका दावा करता हूँ। हमारे विचार जुदा-जुदा हैं और हमारी पृथक्- पृथक् मान्यताएँ हैं, फिर भी हम दोनों आपसमें इस प्रकार रह सके हैं जिस प्रकार कि दो सगे भाई भी नहीं रह सकते। मुझे मालूम है कि भारतने अबतक यह अनुभव कर लिया है कि हमारे राष्ट्रीय जीवनके लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता खाने-पीने और सोनेके समान ही आवश्यक चीज है। मुझे आशा है कि आप अबतक यह अनुभव कर चुके होंगे कि कुछ शर्तोंके पालन करनेपर स्वराज्य एक वर्षके अन्दर प्राप्त किया जा सकता है।

मुझे इस नगरपालिका द्वारा दिये गये मानपत्रको स्वराज्य प्राप्तिके मार्ग में एक साधनके रूपमें स्वीकार करनेमें बड़ी प्रसन्नता हो रही है। इससे यह जाहिर होता है कि भारतकी नगरपालिकाएँ अपने किसी भी विनीत सेवकका स्वागत करनेके लिए उसी प्रकार तैयार रहती है जिस प्रकार कि वे अबतक गवर्नरों तथा वाइसरायोंका स्वागत करनेके लिए तैयार रहती थीं; डरके कारण तथा अपने ऊपर विश्वास न होनेके कारण स्वराज्यकी ओर प्रगति करने में वास्तविक बाधा उत्पन्न होती है। मैं ऐसा कदापि नहीं मानता कि यह मानपत्र मेरी अपनी किसी विशेषताके लिए दिया गया प्रमाणपत्र है, मुझे मालूम है कि यह केवल इस बातको सूचित करता है कि मैं इस समय राष्ट्रका प्रतिनिधि हूँ । नगरपालिकाओंने अब अपने डरको, जो उन्हें घेरे रहता था, छोड़ दिया है और इस धारणाको दूर कर दिया है कि नगरपालिकाएँ सरकारकी पिछलग्गू होनेके सिवा और कुछ नहीं हैं। मैं इस महान् नगरपालिकासे कहता हूँ कि वह एक कदम और आगे बढ़कर अहमदाबाद, नड़ियाद तथा सूरतका अनुकरण करे। मैं इस नगरपालिकासे कहता हूँ कि वह अपने यहाँ शिक्षाका राष्ट्रीयकरण करे। यदि केवल समस्त भारतकी नगरपालिकाएँ भी अपनी शक्ति पहचान लें और अपना कर्त्तव्य निभाने लगें तो मैं यह साहसपूर्वक कह सकता हूँ कि नगरपालि- काएँ ही हमें स्वराज्य दिलाने में समर्थ हो जायेंगी। क्योंकि आखिर स्वराज्य नगरपालिका प्रशासन के विस्तारके अतिरिक्त और है क्या ? और यदि भारतका प्रत्येक गाँव और शहर अपने मामलोंकी देखभाल करने में खुद ही समर्थ हो जाये तो निस्सन्देह इसका अर्थ यह हुआ कि भारतके सभी गाँव व शहर राष्ट्रीय मामलोंको चलाने में समर्थ हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने हमें मार्ग दिखाया है और सारे भारतके सामने एक बहुत सरल परीक्षा रखी है। यदि कांग्रेस हमारी राष्ट्रीय सभा है, यदि कांग्रेस


  1. १. यहाँ कुछ छूटा-सा लगता है ।