पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/५३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०९
भाषण : कोकोनाडामें


भारतमें स्वराज्य स्थापित करनेके लिए हमारा साधन है, तो स्वाभाविक रूपसे ही प्रत्येक हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी और यहूदी स्त्री और पुरुषको, जो भारत में पैदा हुआ है, अपना नाम कांग्रेसकी पंजिकामें दर्ज करा लेना चाहिए। इसीलिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने सुझाव दिया है कि आगामी ३० जूनतक कमसे-कम एक करोड़ स्त्री-पुरुष अपने-अपने नाम कांग्रेसकी पंजिकामें दर्ज करवा लें। एक ऐसे राष्ट्र में जो कुछ महीनोंसे आश्चर्यजनक उत्साह और पारस्परिक ऐक्यका परिचय दे रहा है, कमसे-कम स्त्री-पुरुषोंके तीसवें भागको ३० जूनसे पहले ही कांग्रेसका सदस्य बन जाना चाहिए। निस्सन्देह यह कोई बड़ी बात नहीं है।


आप लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक महाराजकी स्मृतिके प्रति श्रद्धा रखते हैं। मैं जहाँ भी जाता हूँ वहीं घरों और सार्वजनिक सभाओंमें उनके चित्र देखता हूँ। इस लिए कांग्रेस कहती है कि उस महान् दिवंगत देशभक्तके प्रति अपना आदर एवं अपनी लिए ३० जूनसे पहले ही एक करोड़ रुपया एकत्र कर लें। यह एक करोड़ रुपया संगमरमरकी प्रतिमाओं तथा स्मृति भवनोंपर खर्च नहीं किया जायेगा। इस पूंजीका उपयोग स्वराज्य प्राप्तिके निमित्त किया जायेगा। यदि आन्ध्र देशके[१] स्त्री-पुरुष जो गहने पहनते हैं, उनमें से कुछ ही दान कर दें, तो निश्चय ही आन्ध्र देश अपने हिस्सेकी रकम एक ही सप्ताह में पूरी कर देगा। मेरा आपसे निवेदन है कि यदि आप इस वर्ष वास्तव में स्वराज्य प्राप्त करने तथा खिलाफत एवं पंजाबकी शिकायतोंको दूर करने के लिए कृतसंकल्प हैं तो हम अपना सब कुछ बलिदान करनेके लिए तैयार हो जायें।

तीसरी बात जो कांग्रेस सारे भारतसे चाहती है, यह है कि हम ऐसी व्यवस्था करें कि जूनके अन्ततक भारतके घरोंमें २०,००,००० चरखें चलने लगें। अपनी इन सुन्दर बहनों तथा आप लोगोंमें से बहुतोंके शरीरोंपर, मैं जो विदेशी वस्त्र देख रहा हूँ, निश्चय ही वे हमारी गुलामीके बिल्लोंके सिवा और कुछ भी नहीं हैं। मुझे तो हमेशा ऐसा ही लगा है कि भारतके स्त्री-पुरुष विदेशी वस्त्र पहने हुए सुन्दर नहीं बल्कि भद्दे नजर आते हैं। भद्देपनको तब सुन्दरता माना जाने लगता है जब लोग गुलामी- को आजादी मानने लगते हैं। जब भारत में प्रत्येक घर चरखेकी गुनगुनाहटके साथ स्वतन्त्रताका गीत गाता था तब भारत स्वतन्त्र देश था और उसमें दूध-दहीकी नदियाँ बहती थीं। भारत-भरमें एक कोने से दूसरे कोने तक जहाँ-जहाँ मैं बहनोंसे मिला हूँ, वहाँ-वहाँ उन्होंने मुझे बताया कि उनकी माताएँ चरखेको सुख-समृद्धिका चिह्न बतलाया करती थीं। चरखा शुद्धता, सरलता तथा स्वतन्त्रताका प्रतीक है। यह सारे संसारके लिए शान्तिका प्रतीक है। कल श्री दासने[२] ठीक ही कहा था कि चरखने हमें तथा समस्त संसारको यह सिद्ध कर दिखाया है कि हम पश्चिमकी विनाशकारी प्रतियोगितामें नहीं कूदना चाहते। चरखेको घरोंमें फिरसे दाखिल करना इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, जापान और अन्य प्रत्येक देशको यह ज्ञापित करने के समान है कि भारत उनके शोषण-


  1. १. प्रान्त ।
  2. २. चित्तरंजन दास ।