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चरखेके प्रति लोगोंके दिलोंमें इतना विश्वास बढ़ता जाता है, उसे देखते हुए मुझे लगता है कि थोड़े समयमें ही हम हिन्दुस्तान के बाजारोंमें अच्छे, मजबूत और सस्ते चरखे देखने लगेंगे। इस बीच जहाँ-जहाँ चरखेकी प्रवृत्ति चल रही है, वहाँ-वहाँ कायं- वाहक अच्छे और बुरे चरखोंमें भेद करना सीख लें तो ज्यादा अच्छा होगा। जांचके कुछ सामान्य उपाय तो मैं यहीं लिखे देता हूँ :

१. चरखेका चक्र बिना आवाजके और बिना रुके चलना चाहिए ।

२. चरखेका प्रत्येक भाग मजबूतीसे बिठाया हुआ होना चाहिए ।

३. चक्र चलानेका हत्था ऐसा न हो कि अपनी जगहसे फिसल जाये ।

४. चरखेका तकुआ बिना आवाजके फिरना चाहिए और उसके लिए चमरख मूंजका अथवा चमड़ेका बना हुआ होना चाहिए ।

५. अच्छे चरखेपर एक अच्छे सूत कातनेवालेके हाथों एक घंटे में ढाई तोला सूत निकलना चाहिए। जो चरखा अन्तिम शर्तको पूरा न करे अर्थात् एक घंटेमें ढाई तोला सूत न निकाले, उसे पास नहीं किया जाना चाहिए।

बढ़ई स्वयंसेवक

हममें सिर्फ विद्यार्थियोंको ही स्वयंसेवक बनानेकी रूढ़ि पड़ गई है। उसके बदले समस्त अच्छे युवकोंको स्वयंसेवक मण्डलमें शामिल करनेका रिवाज डालनेकी जरूरत है, ऐसा मैं पहले ही लिख गया हूँ । यदि हम राष्ट्रीय प्रवृत्तियोंको बड़े पैमानेपर चलाना चाहते हों तो हमें अनेक कारीगरोंको भी इनमें शामिल करना चाहिए। बढ़ई, लुहार आदि जब लोकहितके लिए काम करने लगेंगे तब हम सस्ते और अच्छे चरखे भी तैयार कर सकेंगे। आज तो हमारी ऐसी दशा है कि हम कातनेके लिए तैयार भी हो जायें तो समयपर अच्छे चरखे बनाकर देनेवाले बढ़ई हमें नहीं मिलते। बढ़ई मिलते हैं तो तकुआ बनानेवाले लुहार नहीं मिलते। लुहार और बढ़ई मिलते हैं तो ईमानदार और स्वदेशप्रेमी धुनिये नहीं मिलते। लेकिन यदि हमारे पास स्वराज्य- के लिए काम करनेवाले लुहार, बढ़ई और धुनियोंके मण्डल हों तो हम जनताको बहुत आगे ले जा सकते हैं। यह काम कितना आसान है सो एक बढ़ई भाईके पत्रसे स्पष्ट हो जाता है। वे लिखते हैं :

स्वामीनारायण मन्दिरका निर्माण कार्य मुफ्त किये जानेके बारेमें आपने अपने लेखमें[१] जो लिखा है वह सही है। स्वराज्य-मन्दिरके निर्माण कार्यमें जिन कारीगरोंकी जरूरत पड़े, वह हम लोगोंकी ओरसे पूरी की जानी चाहिए। उसके लिए अथवा बड़े स्कूलोंका निर्माण करनेके लिए कितने बढ़इयोंकी जरूरत होगी — हम इसका एक अन्दाजा लगा लेंगे और अपनी बिरादरीकी एक सभा करके सारा काम आपसमें बाँट लेंगे। महीने-महीनेकी बारी बांधकर हम लोग वेतन लिये बिना देशकी मदद करेंगे।


  1. २. देखिए “चरखेका आन्दोलन", ६-२-१९२१ ।