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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह पत्र लिखनेवाले मिस्त्री-जैसे अन्य अनेक कारीगर भाई हिन्दुस्तानमें अवश्य होंगे। हम उन्हें स्वदेशके कार्यमें लगायें तो आसानीसे लगा सकते हैं और स्वराज्य- मन्दिरका निर्माण करनेवाले कारीगरोंके मण्डल जगह-जगहपर स्थापित हो सकते हैं।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ५-४-१९२१

२६९. भाषण : मसूलीपट्टमकी सार्वजनिक सभामें

५ अप्रैल, १९२१

हिन्दू और मुसलमान भाइयो और बहनो, आपकी नगरपालिकाने मुझे जो मानपत्र दिया तथा उसमें मेरे लिए जो भावनाएँ व्यक्त की गईं उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। यह मेरे लिए बड़ी प्रसन्नता तथा आनन्दकी बात है कि मैं वह काम कर सका जिसे पूरा करनेकी बात मैंने सोची थी। मैंने अपने कुछ दोस्तोंको यह वचन दिया था कि मैं आन्ध्र जातीय कलाशाला[१] देखनेके लिए मसूलीपट्टम यथासम्भव शीघ्र आऊँगा । यद्यपि मैं बेजवाड़ासे दो बार गुजरा, फिर भी किसी-न-किसी कारणसे मसूलीपट्टम आनेमें असमर्थ रहा हूँ। यह अवसर टलता रहा। विलम्ब ही से सही मुझे यहाँ आनेकी बहुत प्रसन्नता है। विलम्ब इसलिए कहता हूँ कि मैंने मसूलीपट्टममें राष्ट्रीय संस्थाको देखनेका पहलेपहल विचार उस समय किया था जब असहयोग आन्दोलनका अस्तित्व ही नहीं था। मैंने इस महान् शिक्षा-संस्थाकी पवित्र भूमिमें शान्तिपूर्ण और पवित्र ऐसे दो दिन बिताये हैं जिनकी स्मृति मुझे सदैव बनी रहेगी। मैं यहाँ यह कहनेके लिए खड़ा हुआ हूँ कि मैंने इन दो सौभाग्यपूर्ण दिनोंमें जो कुछ देखा है उसके आधारपर यह कहा जा सकता है कि संस्थाके बारेमें मैंने जितनी आशा की थी वह उससे कहीं ज्यादा सिद्ध हुई है। इस स्थलके कण-कणमें मुझे अनुशासन, संगठन-शक्ति और त्याग दिखाई पड़ रहा है। भारतीय होनेके नाते मैं अपनेको गौरवान्वित अनुभव करता हूँ। मुझे आशा है कि आन्ध्र प्रदेशके सभी निवासी इस महान् प्रान्तके निवासी होनेके नाते इसपर उतना ही गर्व करते होंगे। मेरी समझमें मसूलीपट्टमके आप नागरिकगण अपने बीच एक ऐसी संस्थाका होना बहुत बड़ी चीज समझते होंगे, जिसका प्रबन्ध त्यागकी भावनासे भरे हुए मनुष्योंके हाथोंमें हैं। मैं आसानीसे किसी भी संस्थाकी प्रशंसा नहीं करता। लेकिन इन दो दिनोंके अन्दर मेरे दिलमें जो भावनाएँ उत्पन्न हुई हैं, उन्हें मैं आपके सम्मुख व्यक्त न करता तो यह अपने तथा आप लोगोंके प्रति मिथ्याचार ठहरता। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि उस संस्थाको आप अपनी चीज समझकर जहाँ उसे कमजोर पायें वहाँ उसे मजबूत करें। जहाँ लगे कि गुंजाइश है, वहाँ उसे और पूर्णतर बनायें। इसे अपना


  1. १. आन्ध्र राष्ट्रीय कालेज ।