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भाषण : नेलौरकी सार्वजनिक सभामें


शान्तिपूर्वक रह सकें। इस बातका दृढ़ संकल्प कीजिए कि आप एकतासे उत्पन्न अपनी सारी अद्वितीय शक्ति भारतको आजादी दिलाने, इस्लामको स्वतन्त्र बनाने तथा पंजाबके खोये हुए मानको पुनः प्राप्त करनेमें लगायेंगे । हिन्दू तथा मुसलमान दोनोंने, आज दिनमें मुझे बताया है कि इन अहितकारी तुच्छ मतभेदोंके कारण नेलौरमें जिस हदतक असहयोग आन्दोलन तथा खिलाफतका कार्यक्रम किया जा सकता था, नहीं किया जा सका। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कल सूर्योदयके पूर्व ही आप लोग अपने झगड़े खत्म कर देंगे और कल प्रातःकालसे एक विचारशील एवं बुद्धिमान व्यापारीकी भाँति आप अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा निर्धारित कार्यक्रमका पालन करेंगे। तिलक स्वराज्य कोषके लिए जिसे आपने आजसे आरम्भ किया है, दान लेना-देना जारी रखेंगे और तबतक सन्तुष्ट न होंगे जबतक कांग्रेस रजिस्टरमें प्रत्येक वयस्क पुरुष तथा स्त्रीका नाम, वह हिन्दू हो अथवा मुसलमान, दर्ज न हो जाये ।

अब समय आ या है कि आप लोग विदेशी वस्त्रका एक चीर पहनना भी पाप समझने लगें। मुसलमानोंको समझ लेना चाहिए कि विदेशी वस्त्र धारण करना इस्लामकी अधोगतिका द्योतक है तथा हिन्दुओं और मुसलमानों दोनोंको चाहिए कि वे विलायती कपड़ा पहिननेको गुलामीका बिल्ला समझें । मैं यह भी कहूँगा कि आप लोग कपड़ोंके लिए अहमदाबाद और बम्बईका मुँह न ताकें, बल्कि अपनी स्थानीय आवश्य- कताओंकी पूर्तिके लिए स्वयं कपड़ा तैयार कर लिया करें। इस प्रकार स्वावलम्बी बनना आप अपने मान और मर्यादाकी बात समझें । एक अनुभवी कातने-बुननेवालेकी हैसियतसे मैं जो कुछ कह रहा हूँ उसे सत्य मानिये । एक महीनेकी अवधिमें अपनी जरूरतका सारा कपड़ा तैयार कर लेना, नेलौरके ५२,००० पुरुष तथा स्त्रियोंके लिए बिलकुल सरल है। कल एक बुनकरने रात-भरमें ही मेरे लिए पूरे साल-भरका कपड़ा तैयार कर दिया। गत रात्रिको तैयार किया गया वह पवित्र वस्त्र मेरे पास मौजूद है तथा उसपर मुझे अभिमान है।[१] इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि आपसी हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों तथा अन्य प्रकारके झगड़ोंसे अपना ध्यान हटाकर उसे राष्ट्रके सामने उपस्थित मुख्य लक्ष्यपर केन्द्रीभूत करें। मद्यपान, जुआ, झूठ तथा अन्य बुरी आदतोंको बिलकुल छोड़ दें। मेरे तथा आप लोगोंके नामसे की गई इस घोषणाका कि यह असहयोगका संघर्ष आत्मशुद्धिका संघर्ष है, यथावत् पालन करें। अन्ततः मैं आपसे यह स्मरण रखनेके लिए कहूँगा कि राष्ट्रीय सप्ताह अभी समाप्त नहीं हुआ है। इस सप्ताहका दूसरा दिन आज शामको ही समाप्त हुआ है। पूरे पाँच कीमती दिन अभी बाकी हैं। हमें इन पाँचों दिनोंका उत्तम उपयोग करना चाहिए। मैं आपसे आग्रहपूर्वक निवेदन करता हूँ कि इन पाँच दिवसोंमें आप सभी हिन्दू मुसलमान आपसमें मेल बढ़ानेकी ज्यादासे-ज्यादा कोशिश करें। प्रत्येक हिन्दूसे मैं यह आग्रह करूंगा कि उसे जब कभी कोई मुसलमान भाई मिले तो पहले जरूरी न होनेपर भी खुशी और मुस्कराहटके साथ उसे नमस्कार करे । इसी प्रकार मैं यहाँ मौजूद अपने प्रत्येक मुसलमान भाईसे कहूँगा कि जब वह किसी हिन्दूको मिले तो वह हर्ष और मुस्कराहटके साथ नमस्ते, सलाम या वन्देमातरम्


  1. १. देखिए “ भाषण : नेलौरके तिलक विद्यालयमें”, ७-४-१९२१ की पाद-टिप्पणी ।