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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


करना चाहते थे, तब वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जिसे आप रहीम भी कहते हैं, आपकी नम्रतापूर्ण और शान्त उक्तिको स्वीकार कर लेगा। दोस्तीका — भाईचारेका — इम्तिहान इसमें है कि प्रत्येक पक्षके दिलमें दूसरेकी कमजोरीके लिए गुंजाइश रहे और मैं जानता हूँ कि हबके दिन उस पक्षकी जीत होगी जो यह दिखा सकेगा कि मामूली बातोंकी हदतक वह सदैव झुकनेको तैयार रहता था। उस महान् पैगम्बरका जीवन आप लोगों के लिए महत्वहीन बातोंमें झुक जानेकी जिन्दा मिसाल पेश करता है। लेकिन मैं नेलौरके हिन्दू तथा मुसलमान भाइयोंसे कहता हूँ कि वे अपने मतभेदोंके विषयमें एकमत हों या न हों, वे एक-दूसरेके आगे झुकनेको तैयार हों या न हों, वे आवश्यक अथवा अनावश्यक तथ्योंके बारेमें समझौते करें या न करें, मगर यह उसकी मर्यादाके विरुद्ध है कि हिन्दू अथवा मुसलमान एक-दूसरेका गला काटें, एक-दूसरेपर पत्थर फेंकें तथा एक-दूसरेके प्रति हिंसा करें। आप लोगोंके बीचमें न्यायाधिकरण या पंचायतें बनाने के लिए दोनों जातियोंके विश्वसनीय तथा चुने हुए नेता होने चाहिए। ये पंचायतें दोनों जातियोंके समस्त धार्मिक झगड़ोंका निबटारा करें और यदि उन्हें उसके निर्णयसे सन्तोष नहीं होता है तो वे या तो कांग्रेसके पास अथवा खिलाफत कमेटीके पास जाकर झगड़ेका निबटारा करा सकते हैं । अन्ततः मैं मौलाना शौकत अलीकी वह सलाह दुहराना चाहता हूँ जो वे हिन्दू तथा मुसलमान दोनोंको कई बार दे चुके हैं। यदि कोई मुसलमान अपने हिन्दू पड़ोसियोंसे चिढ़ने लगे और उनके प्रति मनमें क्रोधकी भावना भर जाये, यहाँतक कि वह अपने आपको रोक न सके और अपने हिन्दू-भाईको ठीक सजा देनेकी बात सोचने लगे तो उसे महात्मा गांधीके पास जाकर उनका सिर काट डालना चाहिए । इसी प्रकार मैं भी यह कहता हूँ कि यदि हिन्दू लोग मुसलमान पड़ोसियोंके प्रति सन्तापकी भावना अपने दिलोंमें लाते हैं और उनके साथ झगड़ा करना चाहते हैं तो उन्हें अपने मुसलमान पड़ौसियोंपर हाथ नहीं उठाना चाहिए बल्कि उन्हें खुद शौकत अलीके पास जाना चाहिए; यद्यपि वह बहुत जोरावर और मोटे-ताजे शख्स हैं तथापि वह इस प्रकारकी निश्चित प्रतिज्ञा करते हैं कि कोई भी हिन्दू बच्चातक उनके धड़से उनके सरको अलग कर सकता है। हिन्दुओं तथा मुसलमानोंको यह भली-भाँति समझ लेना चाहिए कि स्वराज्यकी आधारशिला, भारत- की स्वतन्त्रताकी बुनियाद, हिन्दू-मुस्लिम एकता है। यह बात दोनों जातियोंको हृदयंगम कर लेनी चाहिए कि जहाँतक खिलाफतका प्रश्न है भारतकी शक्तिसे इस्लामकी सुरक्षा तभी सम्भव हो सकती है जब हिन्दू-मुस्लिम एकता सचमुचमें उनके जीवनका एक अंग बन जाये। हिन्दुओंको भी समझ लेना चाहिए कि इस्लामकी सुरक्षाके लिए उनके बिना किसी शर्त दिये गये हार्दिक और पूर्ण योगदानमें, हिन्दूधर्मकी रक्षा निहित है। इसलिए मेरे प्यारे नेलौर-निवासी देशवासियो, मैं आप दोनोंसे प्रार्थना करता हूँ कि आप चाहे हिन्दू हों अथवा मुसलमान, अपने छोटे-मोटे झगड़ोंको मिटा डालें, लड़ना बन्द करें और इस पवित्र सप्ताहमें[१] अटल संकल्प करें, ईश्वरके समक्ष विनम्र भावसे प्रार्थना करें कि वह आपको भी ऐसी शक्ति और बुद्धि प्रदान करे कि आप एक-दूसरेके साथ


  1. १. राष्ट्रीय सप्ताह ६ से १३ अप्रैलतक ।