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भाषण : मद्रासकी सार्वजनिक सभामें


बदौलत ही दासताकी बेड़ीमें जकड़े रह सकती है। इसलिए मैं आपमें से प्रत्येकसे कहूँगा कि आप समूचे भारतको, माडरेटोंको तथा लिबरल दलको, यह सिद्ध करके सरकारकी गतिविधिको ठप कर दें कि जब वे इस सरकारके साथ सहयोग करते हैं तथा इस सरकार द्वारा चालू की गई दमन नीतिका समर्थन करते हैं तब वे नहीं चाहते हैं कि असहयोगी लोग नशाबन्दी आन्दोलन चलाएँ, सद्भावनाका या सुख- समृद्धिका सन्देश सुनायें तथा भारतीय महिलाओंके सतीत्व रक्षाका सन्देश, जो चरखा चलानेमें समाया हुआ है, प्रसारित करने पायें। दिनपर-दिन हमें इस तथ्यका प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता जा रहा है कि इस सरकारमें अपनी खुदकी अन्दरूनी ताकत अथवा प्राणशक्तिका अभाव है (हँसी) । हमारी कमजोरियोंसे ही उसमें शक्तिका संचार होता है और यह अपनी शक्ति हमारी कमजोरीसे लेती है (साधु, साधु,) यह हमारे मतभेदोंके कारण ही फलती-फूलती है ।

हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य और हिन्दू-मुस्लिम झगड़े अब इस सरकारको खूराक नहीं पहुँचाते (हँसी) । अब तो मुझे दीख पड़ रहा है, और मेरी समझमें आ रहा है कि वह ब्राह्मणों तथा अब्राह्मणोंके बीच चलनेवाले मतभेदोंका अनुचित लाभ उठा रही है (हँसी) । यदि यह असहयोग आन्दोलन ब्राह्मण आन्दोलन है — मेरा खयाल है कि यह ब्राह्मण आन्दोलन ही है — तो इसका इलाज अत्यन्त सरल है क्योंकि ब्राह्मण लोग, यदि वे असहयोगी हैं, अपने लिए कुछ नहीं चाहते। जिस प्रकार हमने अपने बीचमें से हिन्दू- मुस्लिम झगड़े दूर कर दिये हैं उसी प्रकार हमें इन झगड़ोंको मिटा देनेका प्रयास अति शीघ्र करना चाहिए। जो बात मैंने चुनिन्दा वकीलोंकी एक सभामें कुछ समय पहले मद्रासमें कही थी उसे यहाँ दोहराना चाहता हूँ। मेरे मनमें इस बातके विषयमें किंचित् भी सन्देह नहीं है कि ब्राह्मणोंके द्वारा स्थापित की गई महान् परम्पराओंपर ही हिन्दुत्वका सब कुछ आधारित है। वे भारतके लिए एक वसीयत छोड़ गये हैं जिसके लिए प्रत्येक भारतीय — वह किसी भी वर्णका क्यों न हो — उनका बहुत आभारी है। दुनियाके लगभग सभी धर्मोके इतिहासका अध्ययन कर चुकनेके पश्चात् मेरी यह निश्चित धारणा हो गई है कि दुनियामें ऐसा कोई वर्ग नहीं है जिसने निर्धनता और अपने आपको बलिदान कर देना इस प्रकार अपनाया हो जैसा ब्राह्मणोंने । स्वयं एक अब्राह्मण होनेके नाते इस सभामें उपस्थित सभी अब्राह्मणोंसे मैं अनुरोधपूर्वक कहता हूँ तथा उन सभी अब्राह्मणोंसे भी जिनतक मेरी आवाज पहुँच रही हो, कि यदि वे विश्वास करते हैं कि वे अपनी स्थिति ब्राह्मणत्वको निद्य कहकर सुधार सकते हैं तो यह एक बहुत बड़ी भूल करते हैं। इस गुजरे हुए जमानेमें भी भारतके इस छोरसे उस छोरतक भ्रमण करते हुए मैंने देखा है कि आत्मत्याग तथा आत्मोत्सर्ग में ब्राह्मण अग्रगण्य रहे हैं। भारतवर्ष में सर्वत्र ब्राह्मण ही चुपचाप लेकिन निश्चित रूपसे प्रत्येक जातिको उसके सामान्य तथा विशेष अधिकारोंका बोध करा रहे हैं। लेकिन इतना कह चुकनेके पश्चात् मैं भी यह स्वीकार करना चाहता हूँ कि अन्य भारतीयोंके साथ ब्राह्मणोंने भी बहुत अधिक कष्ट झेले हैं। उन्होंने भारतके सामने स्वेच्छासे तथा जानबूझकर ऐसे सर्वोच्च मानदण्ड जिन्हें मनुष्यका मस्तिष्क कल्पनामें ला सकता है प्रस्तुत किये हैं। यदि भारत-