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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


देख चुके हैं। हमारी नीतिकी विजयकी सबसे महत्वपूर्ण घड़ी वही होगी जब हम किसी प्रकारकी हिंसा किये बिना कड़ीसे-कड़ी यातना सह सकेंगे। इस सरकारको या तो भारतके प्रति किये गये अन्यायों — घोर अन्यायों — के लिए खेद प्रकट करना होगा, अथवा उसे दमनकी प्रणालीका सहारा लेकर भारतको अपने अधीन बनाये रखना होगा । जब मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा कि डायरशाही और ओ'डायरशाही कोई विच्छिन्न घटना नहीं है बल्कि भारतको हर हालतमें अपने अधीन बनाये रखनेपर तुली हुई सरकारकी सुनिश्चित नीति ही है, मैंने केवल तभी इस शासनप्रणालीको शैतानियतसे भरी शासनप्रणाली कहना शुरू किया। लेकिन असहयोगियोंके सामने केवल एक ही मार्ग है। वह यह कि हम अपनी विचारशक्तिको अपने अन्तःकरणकी ओर प्रेरित करें; आत्मशुद्धि करें और कोई हमें कितना ही क्यों न उकसाये हम उत्तेजित न हों। इसलिए मैं उन लड़कोंके पिताओंसे, जो असहयोग आन्दोलनके किसी भी काममें लगे हुए हैं तथा प्रचारकार्यमें सक्रिय रूपसे भाग लेनेवाले स्वयं असहयोगियोंसे भी, निवेदन करता हूँ कि वे यह अच्छी तरह समझ लें कि यदि वे अपना यह काम चालू रखते हैं तो उन्हें इसे यह मानकर करना चाहिए कि उनके प्रति हिंसा बरती जा सकती है किन्तु फिर भी उन्हें बदलेमें हिंसा नहीं करनी है। यदि भारत परीक्षाके इस वर्षमें — उसके लिए तो यह वर्ष आत्मशुद्धिका वर्ष है — और कुछ न करे फकत आत्मनिय- न्त्रणसे काम लेता रहे तो विश्वास कीजिए कि हमारी प्रगतिमें अथवा भारतमें इसी वर्षके भीतर स्वराज्य स्थापित होनेमें आड़े आनेवाली मुझे कोई चीज दिखाई नहीं पड़ती। यदि आपके हृदयमें ईश्वरके प्रति आस्था है — ईश्वरमें विश्वास न रखनेवाला व्यक्ति असहयोगी हो ही नहीं सकता है — यदि आप त्याग, आत्मशुद्धि और प्रार्थनाके इस सप्ताहमें ईश्वरके प्रति विश्वास रखते हैं तो आप एकाग्रचित्त होकर ईश्वरोपासनाके समय परमात्मासे यह याचना करें कि वह हम सबको, पूरे भारतवर्षको ऐसी शक्ति प्रदान करे, जिसके बलपर हम लोग इस सरकार द्वारा हमारे प्रति बरती गई सब प्रकारकी हिंसा सहन कर सकें।

यह तो और भी अधिक जरूरी है कि हम असहयोगी अपने शब्दोंको तौलकर बोलें, अपनी गतिविधियोंको संयमित रखें और उनमें किसी भी प्रकारकी हिंसाका भाव न आने दें। हमारी किसी भी बातमें उसकी गन्ध नहीं होनी चाहिए। यदि हम केवल इतना ही करें कि स्व० प्रेसीडेन्ट क्रूगरके शब्दोंमें “आत्मशुद्धिके इस दौर " को बदस्तूर कायम रखें तो हम इसी वर्षमें संसारको चकित कर देंगे। क्योंकि हमने न केवल मद्रास अहातेमें बल्कि मध्य प्रान्तमें, संयुक्त प्रान्त तथा भारतके अन्य भागोंमें दमनके अतिरिक्त और देखा ही क्या है ? सर विलियम विन्सेंटके इनकारके बावजूद भी मैं आपके समक्ष कहना चाहता हूँ कि मध्य प्रान्तमें मद्यनिषेध आन्दोलन एक जुर्म मान लिया गया है तथा जब वे असहयोगको हर तरहसे कुचल देनेकी बात करते हैं, तो उनका मतलब चरखोंको खत्म कर देना या शराबबन्दीको दबा देनेका होता है। हम अपनी आत्मशुद्धिके द्वारा धीरे-धीरे यह सिद्ध कर रहे हैं कि यह सरकार भारतको आबकारी लगानके बलपर अथवा लंकाशायरकी मिलों द्वारा भारतके शोषणकी