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भाषण : मद्रासकी सार्वजनिक सभामें


खानपानको अस्पृश्यताके साथ न मिलायें और इस प्रकार, जैसा हिन्दुओं और मुसलमानोंने आपसमें कर लिया है, हिन्दू भी अपने अन्दरके ऊँच-नीच भावको मिटा दें तो 'भगवद्गीता'[१] के शब्दोंमें जब हमारे हृदयोंमें ब्राह्मण तथा चाण्डाल दोनों बराबरी- का दर्जा पा लेंगे तब आप देखेंगे कि ब्राह्मण अब्राह्मणकी कोई भी समस्या समाधानके लिए नहीं रह जाती है।

असहयोग चिकित्सा शास्त्रकी भाषामें एक प्रकारका अपूतिदूषित इलाज (एसेप्टिक ट्रीटमेंट) है। रोगाणुरोधक दवाइयाँ केवल उस समय आवश्यक होती हैं जब हमारे शरीरोंमें दोष जमा हो जाता है और हम उन दोषोंको नष्ट करनेके लिए अन्य कीटाणु अपने शरीरमें स्थापित करते हैं; लेकिन अपूतिदूषित चिकित्सा प्रणालीमें आन्तरिक स्वच्छता गृहीत मानी जाती है। इसलिए सरकारके साथ हमारे असहयोगका तात्पर्य केवल इतना ही है कि हम अपनी आन्तरिक स्वच्छता और गन्दगीको दूर कर चुके हैं। अँघेरेको और भी गहरा करके हमने अँधेरा दूर कर दिया है ऐसा कहनेका ढोंग हम नहीं रच सकते। हम और भी अधिक हिंसा अपनाकर सरकारकी हिंसाका शमन अथवा निवारण नहीं करना चाहते। हमारे स्वराज्यमें पृथ्वीपर किसी भी जीवधारीका शोषण नहीं होना चाहिए । इसलिए मैं आपसे सानुरोध कहता हूँ कि आप अपना ध्यान केवल उन्हीं तीन बातोंपर केन्द्रीभूत करें जिन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने आपके सामने रखा है। मैं चाहता हूँ कि आप लोग सरकारको ऐसा कोई भी मौका न दें कि वह हमें हमारे भाषणोंके कारण जेल भेज सके। लेकिन मैं अपनी आँखोंमें एक भी आँसू लाये बिना जेलके दरवाजे खुले रखना और भारतवर्षकी सब स्त्रियोंको अपने घरोंमें चरखे रखनेके अपराधमें जेल भेज देना पसन्द करूंगा । हमें सरकारके प्रति अथवा अपने उन दोस्तोंके प्रति जो आज हमारी मुखालफत कर रहे हैं अधैर्य नहीं बरतना चाहिए। प्रत्युत हमें अपने ही प्रति अधीर होना चाहिए। हमारे व्याख्यान तथा सभी प्रस्ताव अधिकतर हमारे प्रति सम्बोधित होते हैं अथवा होने चाहिए। और यदि हम कांग्रेस, खिलाफत कमेटी तथा मुस्लिम लीगके द्वारा पेश किये गये इस साधा- रण कार्यक्रमको निभा पाये तो मैं अपने उस विश्वासको आपके सामने दोहराकर कहता हूँ कि इसी सालके अन्दर हम स्वराज्य ले लेंगे और खिलाफत तथा पंजाबके साथ हुए अन्यायका भी परिमार्जन करा लेंगे।

आज अपना भाषण समाप्त करनेके पूर्व मैं मद्रासके शिक्षित पुरुषोंके लिए दो शब्द कहना चाहता हूँ। मैं अपनी लम्बी-लम्बी यात्राओंके अनुभवके बाद अपनी आँखों देखी आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। जनता तथा भारतकी महिलाएँ पूर्णत: हमारे साथ हैं। मैं शिक्षित भारतीयोंसे निवेदन करूंगा कि वे मेरा यह कथन सच मानें कि वे इतनी बुद्धिहीन अथवा असंस्कृत नहीं जितना कि हम उन्हें बहुधा मान बैठते हैं। हम शिक्षित लोग अपनी तिमिराच्छादित बुद्धिसे जितना कुछ समझ पाते हैं वह उनके सहज स्वभावसे स्फुरित अवलोकनके सामने कम ही बैठता है। मैं आपसे सर टामस मुनरो[२]


  1. १. अध्याय ५, श्लोक १८ ।
  2. २. मद्रासके राज्यपाल, १८२०-२७ ।