पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/५८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५५६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


द्वारा की गई साक्षी[१] स्वीकार करनेके लिए भी अनुरोध करूंगा। मैं उस साक्षीकी पुष्टि करता हूँ कि भारतकी जनता संसारके देशोंकी जनतासे कहीं ज्यादा शिष्ट है।

आप सबको विदित ही है कि आजकल सभासे जानेसे पूर्व मैं तिलक स्वराज्य कोषके लिए चन्दा इकट्ठा किया करता हूँ। अभी स्वयंसेवकगण आपके बीच आयेंगे । मैं आप लोगोंसे अधिकसे-अधिक दान देनेके लिए प्रार्थना कर रहा हूँ। आपने जिस विशेष शान्तिके साथ मुझे सुना है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मेरी परमात्मासे प्रार्थना है कि वह हमें अपने कर्त्तव्य पालनके लिए आवश्यक साहस तथा बुद्धि प्रदान करे [ जोरकी तथा देरतक हर्षध्वनि ] ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ९-४-१९२१


२७६. मेरी उड़ीसा यात्रा

गोपबन्धु दास

जब उड़ीसामें अकाल पड़ा था तब यद्यपि मैं यह समझ गया था कि उड़ीसा- में बड़ी दरिद्रता है तथापि मेरी मान्यता यही थी कि चम्पारन-जैसे दरिद्र लोग देशके अन्य किसी भागमें नहीं होंगे; लेकिन अब मुझे लगता है कि उड़ीसा उससे भी अधिक दरिद्र है। फर्क इतना ही है कि चम्पारनमें लोग नीलके खेतोंके मालिकों द्वारा दिये गये दुःखोंसे पीड़ित होकर भिखारी बन गये थे और उड़ीसामें जो दुःख है वह प्रकृतिके कोपसे हुआ है । या तो अनावृष्टिके कारण फसलें आती ही नहीं हैं अथवा अतिवृष्टि होनेसे बाढ़ आ जाती है और उससे फसल और घर दोनों ही बरबाद हो जाते हैं । फलतः उड़ीसामें हमेशा अकालकी-सी स्थिति बनी रहती है ।

इस कंगाल देशमें फिलहाल तो सच्चे नेता गोपबन्धु दास हैं जिन्होंने श्री अमृत- लाल ठक्करको अकालके समय पूरी-पूरी मदद दी थी । गोपबन्धु बाबू वकील बने, थोड़े वर्षोंतक उन्होंने वकालत की लेकिन अन्तमें उसे छोड़कर अपना सर्वस्व देश-सेवाके लिए अर्पण कर दिया। उन्होंने पुरीसे बारह मील दूर साखीगोपालमें एक स्कूलकी स्थापना की है ।

कुंजशाला

इस स्कूलमें उद्योग और किताबी पढ़ाई दोनों ही की शिक्षा दी जाती है। इस स्कूलको सरकारने मान्यता प्रदान की थी लेकिन असहयोगका प्रस्ताव पास होनेके बाद गोपबन्धु बाबूने सरकारकी इस मान्यताको अस्वीकार कर दिया। तब कितने ही विद्यार्थी चले गये किन्तु कितने ही नये विद्यार्थी स्कूलमें आ भी गये । इस स्कूलके लिए गोपबन्धु बाबू स्वयं भिक्षा माँगकर धन इकट्ठा करते हैं। यह स्कूल हरे-भरे


  1. १. खण्ड १०, पृष्ठ ६८-६९ ।